लघुकथा

धृतराष्ट्र अभी भी जिंदा है

“रंडी, साली को जवान बेटे की भी चिंता नहीं।” सत्तर साल के बूढ़े की जुबान कैंची समान चल रही थी।
“किसे ये गालियाँ दी जा रही हैं ? अश्लीलता की भी हद है!” मौके पर  पहुँचे एक राहगीर ने बगल में खड़े पड़ोसी  से पूछा।
“अपने ही चचेरे भाई की विधवा बहू को गाली दे रहा है बूढ़ा?” पड़ोसी ने धीरे से कहा।
“क्यों?”
“बहू के इशारे पर चलता है उसका बेटा। गलत संबंध है दोनों में। बूढ़े का कहना है।”
“बेटे को कुछ नहीं कहता?”
“बेटा भी शादी शुदा है। बचपन की देहरी पार कर चुकी एक बेटी का बाप है। लेकिन बेटे को कभी गाली नहीं देता है यह बूढ़ा और न कभी तिरस्कार ही  करता है।” पड़ोसी ने फुसफुसाकर कहा।
“बिल्कुल धृतराष्ट्र है यह बूढ़ा।” राहगीर ने कहा।

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]