तराशा है तुझको खुदा ने कुछ इस तरह
कि कोई भी नुक्स नजर नहीं आता
मुँह फेर लूँ गर तेरी रवायत से अनजाने में
बिन तेरे कहीं सुकून नजर नहीं आता।
तू जान है मेरी मैं हूँ तेरी अदना सी धड़कन
तू सुरूर है मेरा मैं हूँ जैसे तेरी एक उलझन
तुझे हो न हो मुझे वफ़ा की उम्मीद आज भी है
जैसे परवाने को कुछ और नजर नहीं आता
किस्मत में मेरी तेरी ताबीर हो न हो सनम
ख्वाबों पर मेरे किसी का अख्तियार नहीं
दिल पर तेरे क्यों हक किसी का गवारा नहीं
ज्यूँ चाँद बिन उजाला नजर नहीं आता ।
— वर्षा वार्ष्णेय