कविता

स्मृति शेष

 

आंखें नम हैं एक मुलाकात बस आखिरी हो गई

पुनर्मिलन की उम्मीदें दिवास्वप्न सी हो गईं,

सहसा विश्वास करना कठिन लगता है

पहली और आखिरी मुलाकात का दृश्य

डबडबाई आंखों में जैसे चलचित्र बन घूमता है।

एक और मुलाकात का वादा भी हम दोनों का था,

जिसमें वादों से ज्यादा आत्मविश्वास झलकता था

अब वो महज यादों में ही जिंदा है

अपने आप से भी शर्मिंदा है।

इसलिए नहीं की आत्मविश्वास बिखर गया

बल्कि इसलिए कि वादा करने वाला ही

जब अपने ही वादे से मुकर गया,

न वादे की चिंता की, न ही उसका विश्वास कांपा,

और चल दिया अपनी अलग दुनिया में,

जहां इस दुनिया के वादे,भरोसे,

और रिश्तों का कोई मतलब होता,

वो वहां मगन हो जाता अपनी नई दुनिया में

यहां जिसको छोड़ जाता, वो रोता रहा जाता

जब तक अकाट्य सत्य को नहीं स्वीकारता

तब तक आंसू बहाता रहता

सत्य स्वीकारते ही,पुराने ढर्रे पर फिर आ जाता

सब कुछ भूल जाता

कभी कभार याद करता फिर

जेहन से दूर कर देता

क्योंकि तब पक्का यकीन जो हो जाता

जो चला गया इस दुनिया से दूसरी दुनिया में

वो हमारे लिए कभी लौटकर नहीं आता,

महज स्मृति शेष बनकर रह जाता।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921