सामाजिक

ज़िन्दगी एक ख़ूबसूरत मौक़ा

ज़िन्दगी एक ख़ूबसूरत मौक़ा है। कुदरत ने चौरासी लाख जून की ज़िंदगी को एक ख़ूबसूरत मौक़ा केवल तो केवल एक बार ही देना है। दोबारा नहीं, बिल्कुल दोबारा नहीं। इस को हर हाल व्यर्थ में जाया नहीं करना चाहिए। इस ख़ूबसूरत मौक़े के बेहतरीन कीमती तोहफों की अनेकानेक ही दुख सुख की शाखाएं फलती फूलती रहती हैं तथा समय के साथ ही समाप्त होती रहती हैं। दुख सुख का सुमेल ही इस को चलाने के लिए निश्चित है क्योंकि इस शरीर अंदर अनेक अवस्थायें आती हैं। जैसे बचपन, जवानी, प्रौढ़ता, बुढ़ापा यह शारीरक क्रियाएं निश्चित हैं। अगर आप को जो मौक़े मिलते हैं जिन्हों में ख़ूबसूरती के अर्थ होते हैं उनको अपनाने के लिए ज़रूरत, मेहनत, लग्न, संघर्ष, समतोल सोच तथा उस परविरदिगार का आर्शीवाद होना भी अनिवार्य है। कुछ लोग इन मौक़े को पाने के लिए निर्भीक, तथा संवेदनशील होकर पहल कर लेते हैं तथा कुछ लोग शर्मिंदगी या भय या अप्राप्तियों की वजह से मौक़ा छोड़ देते हैं। जिस पर उनको सारी उम्र पछतावा रहता है क्योंकि मौक़े में से प्राप्तियां पाना उम्र के तकाज़े पर निर्भर करता है। ढलती उम्र आप का साथ नहीं दे सकती यह कुदरत का नियम (नीयम) है क्योंकि समय बहुत बलवान है यह किसी के हाथ नहीं आता जो बीत गया वह वापस नहीं आ सकता, यह कुदरत की सच्चाई है। जिस को कोई विज्ञान भी रोक नहीं लगा सकता। कुदरत के पास जो कुछ भी है मनुष्य उसे बदल नहीं सकता। उस को ख़ूबसूरत बनाने के लिए बढ़ौतरी अवश्य कर सकता है। इस मौके में स्वर्ग भी है और नरक भी। पतझड़ भी और बसंत भी है। उन्नति को गिरावट भी। शक्ति भक्ति और दुर्बलता भी है। उदासीनता तथा अशक्ति भी। सूर्य, चांद, सितारे, धरती इस मौके के संपूर्ण गवाह हैं। सूर्य चांद सितारे तथा धरती मौक़ा नहीं दृश्य रूप में चिरंजीव हैं जो कभी मरते नहीं ,नष्ट नहीं होते परन्तु जिन्दगी एक मौक़ा पा कर अदृश्य हो जाती है। प्रत्येक किस्म का साहित्य तथा प्रत्येक किस्म का विज्ञान (उपलब्धियां) इस मौके को, समय को कैद कर लेता है। साहित्य ही समय को, मौक़े को कैद कर लेता है। साहित्य ही समय को, मौके को कैद कर सकता है। शब्दों की मुट्ठि में बंद कर सकता है तथा कर लेता है। विज्ञानक अविष्कार तथा खोज समय को मुट्ठी में बंद कर लते हैं परन्तु मुनष्य को ज़िन्दगी में मौका केवल एक बार ही मिलता है। इसके पीछे लग्न, शक्ति, भक्ति, संघर्ष, उधम, कर्मठता, धैर्य, निश्चय, सहृदयता, साकारात्मक सोच, तथा विवेकशीलता की आवश्यकता होती है। कई लोग मौके ढूंढ लेते हैं तथा कई लोगों को मौक़ा ढूंढ़ना नहीं आता। मौक़े की इबारत, ईबादत, मिलना कुदरत के ऊपर भी निर्भर करता है। ख़ूबसूरत मंज़िल हासिल करनी हो तो नींद नहीं आती, मेहनत मज़बूर करती है, मौक़ा मचलता है। मंज़िल हासिल करनी हो तो हृदय में एक कंकर पारे की तरह चुभता रहता है। इस ख़ूबसूरत मौक़े में बहुत कुछ आप के ऊपर निर्भर करता है तथा बहुत कुछ कुदरत के ऊपर भी निर्भर करता है। हालात तथा घटनाओं की परिस्थियां भी मौके पर निर्भर करती हैं। संभल कर उठना तथा फिर उसी रफ्तार के कदमों में चलना, ज़िंदगी को भव्य बनाने के अर्थ मिलते हैं। कई बार मौक़ा आपकी दहलीज पर खुद व खुद ही आ जाता है परंतु आप अपनी नालायकी आलस्य का भय या ना समझ या ज़ुर्रत न होने की वजह  से छोड़ देते हैं अलवत्ता इसकी अप्राप्ति सारी उम्र पैर में धंसे नोकदार तीखे कांटे की चीज़ की भांति चुभती रहती है। जिसमें लहू तो नहीं बहता परन्तु एक दर्द की टीस चुभती रहती है।  दुनियां में जितने भी महान प्राप्तियों युक्त व्यक्ति हुए है उन्होने मौक़े को, समय का पूरा पूरा फायदा लेकर उच्च दर्जे़ के कीर्तिमान स्थापित किए तथा बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने मज़बूरियां, तंगदस्ती, लाचारियों की वजह से ख़ूबसूरत मौके छोड़ दिए या छोड़ने पड़े। उन्होने मौक़े के रास्तों को अपनाया ही नहीं बल्कि वे मंज़िल से भी अधूरे रह गए यह नहीं कि उनके पास उच्चकोटि का दिमाग़ या विवेकशीलता नहीं थी यां उच्च विद्या नहीं थी बल्कि उन्होने केवल तो केवल जु़र्रत तथा दलेरी का प्रयोग नहीं किया। सपना तथा भय मनुष्य को कमज़ोर बना देता है। जिस व्यक्ति में साकारात्मक भय है वह आगे बढ़ता जाएगा मगर जिसमें नाकारात्मक भय है वह बंदा कभी भी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच सकता क्योंकि नाकारात्मक भय में सामना करने की जु़र्रत नहीं होती। मंज़िल दिखती है परन्तु उसके कंटीले राहों से घबरा कर आगे नहीं जाना चाहते मगर जो व्यक्ति इस नाकारात्मक भय से सुचेत हो कर साकारात्मक भय अपना लेते हैं, भय का सदउपयोग करते हैं वह कंटीले राहों में कांटे एक तरफ करके अपना रास्ता बना लेते हैं क्योंकि कांटे एक तरफ करने के लिए बुद्धि, दिमाग़, समय, निर्भीकता चाहिए। हाथ लहू लूहान भी हो सकते हैं परन्तु लोग मंज़िल पा लेते हैं। इस में समय अनिवार्य बांधना पड़ता है। जिस से सुख की, प्राप्तियों की फुनगियां फूटती हैं जिनके अंकुर से अनेकानेक बीज पैदा होते हैं।जिन्दगी का मौक़ा केवल एक बार ही मिलता है। आप उम्र के तक़ाज़े में जो बन गए सो बन गए। कई मनुष्य प्राप्तियों की तलाश में रहते हैं तथा प्रौढ़ उम्र में जा कर समय को बांध लेते हैं अपनी समतल सोच से, सीखने और मानने की भावना से आगे बढ़ना शुरू करते हैं सीख सीख के, पढ़-पढ़ कर, उस्तादों की मदद से मंजिल तक पहुंचते हैं। परन्तु प्रौढ़ उम्र में जा कर मंज़िल को पाना आसान नहीं होता। कोई विरला मनुष्य ही प्रौढ़ उम्र में उन्नति की मंजिलें छूह सकता है। या यह कह लिया जाए कि समय उन के हक़ में तथा वह समय के हक़ में किस्मत का सहारा ले लेते है। इस मौक़े के अमीरी तथा गरीबी को दो पहलू है जिसमें दुख सुख साझा होता है। उम्र के तकाज़े साझा होते हैं। कई व्यक्ति गरीबी से उठकर बुलंदी प्रतिष्ठा तथा उच्च् पद को हासिल कर लेते हैं। परन्तु कई अमीर व्यक्ति हालातों तथा घटनाओं की आंधी में बरबाद होकर गरीबी की दल दल में धंस गए। यह सब मौक़े तथा समय का खेल है। ज़िन्दगी बहुत छोटी है जैसे सुबह सवेरे ख़ूबसूरत फूल की पत्ती की नोक के ऊपर खडी शबनम। आप क्या बनना चाहते है? बन सकते हो।परन्तु आप को अच्छी सच्ची सहृदयता वाली अगुवाई, शिवेनशीलता तथा उधम की ज़रूरत है। जिस तरह एक बीज बोने के बाद फूटते पौधे की माटी को माली की, सूर्य की, पानी की, खाद्य इत्यादि की ज़रूरत होती है। प्रेरणा तथा उत्साह उन्न्ति का मूल स्त्रोत है। अगर यह दोनों ईमानदारी वाले मिल जाएं तो सुनियोजित सर्वोत्तम कीर्तिमान पैदा किए जा सकते हैं। मां से लेकर भगवान तक प्रेरणा तथा उत्साह बल पूर्वक मिले तो मौक़े में बुलंदी आ जाती है।दोस्तों ख़ुशी परमात्मा नहीं देता ख़ुशी आपको ढूंढनी पड़ती है। घर से, बाहर से, गगन, धरती, दरिया, मानव, ईर्द-गिर्द से, रिश्तों की साझ से, कुदरती वातावरण सृजने से, प्यार से संगीत से इत्यादि से। परमात्मा का तो केवल आर्शीवाद सब के लिए होता है। यह ख़ूबसूरत तन ही आप का भगवान है, आप का पुत्र है, आप का मित्र है और कोई नहीं। सुबह सबेरे उठें शीशे (दर्पण) के सामने खड़े होकर इस तन को मन की गहराई से देखें ओर सोचें कि यह मौक़ा केवल एक बार ही मिला है। फिर इस तन को पुत्र की भांति प्यार करें, लाडियां करें, इस से बातें करें, दैनिक कार्यों की शुरूआत इससे करें, इससे पूछें कि तूने क्या करना है? क्या खाना है? क्या पहनना है? इत्यादि ।यह ही आप का असली रब्ब, (भगवान) है, इससे ही समस्त मौक़े मिलते हैं। यह ही तरक्की का सूत्रधार हैं। इसको बस में कर लिया तो उच्च दर्जे की सफलता कीर्तिशा आप के पैर चूमेंगी। मूल्यों का विकास परिवार ही होता है यह तो स्पष्ट है कि मूल्य द्वारा सब प्रकार की वस्तुएं, भावनाएं, विचार, गुण, किृया, पदार्थ, व्यक्ति समूह तथा तथ्यों आदि का मुल्यांकन किया जाता है। जीवन संयोगों का दूसरा नाम है। हमारे जन्म तथा मृत्यु के बीच के काल समय ही जीवन कहलाता है जो कि परमात्मा द्वारा दिया गया वरदान है। उम्र को पाना एक पहलू है तथा उस को जीना अलग पहलू है। उम्र बढ़ रही होती है परन्तु ज़िन्दगी घट रही होती है। उम्र तबतक बढ़ती है जब तक जीवन की दौड़ खत्म नहीं होती।जीवन एक प्रक्रिया है पदार्थ नहीं, जीवन का मतलब अस्तित्व की उस अवस्थ से है जिसमें वस्तु या प्राणी के अन्दर चेष्टा, उन्नति, तथा बुद्धि के लक्षण दिखाई दें। ज़िन्दगी एक ख़ूबसूरत मौक़ा है। जो संवेदनशीलता की क्रियाओं के अस्तित्व को समझने की तलाश में सांसों की आखिरी डोर तक दम भरता हुआ अर्थी तक साथ देता है। ज़िन्दगी इतनी लम्बी नहीं कि हज़ार वर्ष जीना। ज़िन्दगी बहुत छोटी है। काम करने की उम्र तंदरूस्ती के साथ बिमारी रहित रह कर बंदा 80-85 वर्ष तक काम कर सकता है अलबत्ता भारी भरकम तथा तकलीफ रहित कार्य हो तो फिर जा कर सही नेतृत्व कर सकता है क्योंकि 80 वर्ष के बाद बहुत कम लोगों के पास ऊर्जा, सोच बचती है। दोस्तों जिन्दगी बहुत छोटी है। एक ख़ूबसूरत मौक़ा है। इसको व्यर्थ ना जानें दें।

— बलविन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409