कविता

ऐसा कानून बना दो

मैं बहुत मगरुर हूं

अपने घमंड में चूर हूं

नहीं किसी की फ़िक्र मुझे है

मैं दिमाग से बहुत दूर हूं।

जब मैं ही खुद को समझ न पाता

जाने क्या क्या मैं बक जाता

चर्चा में मैं बना रहूं

बस विवाद से अपना नाता।

चाहे जितना दोष लगाओ

चाहे जितना सब मिल समझाओ

मैं पप्पू हूं पप्पू ही रहूंगा

किसी की दया पर नहीं जिऊँगा।

सत्ता का न मोह मुझे है,

खुद की भी परवाह नहीं है

चाहे मेरा पद ले लो

या चाहो तो जेल भेज दो।

मुझको फर्क न पड़ने वाला

बड़ा लापरवाह हूं यही समझ लो

चाहे जितने आरोप लगा लो

पर मेरा अरमान समझ लो।

सारे हथकंडे अपना चुका हूं

उछलकूद कर हार चुका हूं

मेरे हित की खातिर अब

सब मिलकर संन्यास दिला दो

मेरा भी उद्धार करा दो

मेरा बेड़ा पार करा दो

इतनी दया करो मुझ पर

मेरी चर्चा बंद करा दो।

बहुत हो चुका लुका छिपी

अब तो मेरी विनती सुन लो

तुम अपना कर्तव्य निभा दो

राजनीति से दूर करा दो।

अपने हित की सोच सकूं

इतनी फुर्सत मुझे दिला दो,

एक अदद कंठी माला पहना दो

भगवा परिधान में मुझे सजा दो।

पूजा पाठ जप तप का प्रबंध करा दो

मेरा भी जीवन धन्य बना दो

मुझे राम की शरण मिल सके

बस! ऐसा कानून बना दो।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921