कविता

आप मेरे शुभचिंतक हैं

आजकल मेरे जीवन की अजीब पहेली है
दर्द चिंता आंसुओं में डूबी मेरी सहेली है
समझ आता नहीं ये क्यूं बनती सांप सीढ़ी है।
उसकी सूरत जेहन में चिपक सी गई है
लगता ऐसा वो मेरी आत्मा सी हो गई है
कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं हो रही है
पर उससे अपनी रिश्तेदारी सी हो गई है
वो मौन होकर भी बहुत कुछ कह देती है
दूर जाने के रास्ते में दीवार खड़ी कर देती है
जाने अंजाने आंसुओं का सैलाब आ जाता है
टूटने से बचा कैसे हूं ये समझ में भी नहीं आता।
कोई इसका हल बताकर बस इतना अहसान कर दो
उलझनों के भंवर जाल से मुक्त होने का मार्ग दे दो।
आप सभी ज्ञानी, गुरुजन बुद्धिमान विवेकवान हैं
हर समस्या का सरल, सहज समाधान दे सकते हैं
मेरी उलझन मेरी समस्या का सटीक हल दे सकते हैं
आप मेरे शुभचिंतक हैं क्या इतना भी नहीं कर सकते हैंै।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921