लेखस्वास्थ्य

विश्व ट्यूबरकुलोसिस दिवस:हां! हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं!

रानी एक साधारण गरीब परिवार से है। वह बिहार के एक गॉव से आजीविका की तलाश में दिल्ली महानगर आई है। अपनी माँ की तरह वह भी घर घर जाकर झाड़ू पोछा और बर्तन से लेकर कपडे धोती है।

कई दिनों से रानी को खांसी के साथ हल्का बुखार है, तथा भूख भी कम लग रही थी। हर वक़्त शरीर थका थका सा रहता है । शहर के पास एक गांव में जहां वह अपनी माँ के साथ रहती थी उसने किसी झोलाछाप डॉक्टर से दवाई ली पर आराम नहीं आया।

एक दिन एक घर में काम करते हुए वह चक्कर खा कर गिर गई। घर की मालकिन ने उसे अपने फॅमिली डॉक्टर को दिखाया। रानी के कुछ प्रशिक्षण हुए तो पता चला की उसे फेफड़ो की टी बी है।

टी बी यानी ट्यूबरकुलोसिस एक आम संक्रमित रोग है जिस का अगर इलाज ना किया जाए तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते है। इसका नाम सुनते ही मन में बेचैनी और घबराहट हो जाती है। ऐसा भी देखने में आया है की टी बी के मरीज के सके सम्बन्धी भी किनारा करने लग जाते है और उसे अछूत की तरह समझा जाता है। इस बीमारी के साथ कुछ गलत धारणाएं जुड़ी हैं, जैसे यह एक जेनेटिक बीमारी है तथा इसका इलाज नहीं हो सकता तथा यह सिर्फ गरीबो की बिमारी है तथ सिर्फ फेफड़ो में होती है।टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन इसका असर शरीर के लगभग हर अन्य अंग पर पड़ता है। यह लिम्फ नोड्स, पेट, गुर्दों, रीढ़ की हड्डी और दिमाग आदि सभी हिस्सों को प्रभावित करता है।

टीबी दुनिया भर में मौतों के दस मुख्य कारणों में से एक है और एक ही संक्रामक कारक की वजह से मौतों का मुख्य कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘ ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2022 के मुताबिक दुनिया भर में गत वर्ष में 1.6 करोड़ लोगो की जान गई तथा 10.6 करोड़ लोग टीबी से ग्रस्त हुए । भारत में दुनिया के 22 % मरीज़ है तथा तेज़ी से टी बी फ़ैल रहा है। हालांकि टीबी सभी देशों में हर उम्र के लोगों में पाया जाता है, लेकिन इसका उपचार एवं रोकथाम संभव है।

टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन इसका असर शरीर के लगभग हर अन्य अंग पर पड़ता है। यह लिम्फ नोड्स, पेट, गुर्दों, रीढ़ की हड्डी और दिमाग आदि सभी हिस्सों को प्रभावित करता है।

141 साल पहले ट्यूबरकुलोसिस के बैक्टीरिया का पता चला था। आज ही के दिन 1882 में जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कॉख ने ट्यूबरक्लोसिस के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज की थी । उनकी ये खोज टी बी के इलाज में बहुत सहायक हुई। इस बीमारी को तपेदिक या क्षय रोग के नाम से भी जाना जाता है। 1905 में उन्हें अपनी खोज के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला।

टी बी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए 24 मार्च को विश्व ट्यूबरकुलोसिस दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व टीबी दिवस 2023 का थीम है “हां! हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं!

-डॉक्टर अश्वनी कुमार मल्होत्रा
लुधियाना

डॉ. अश्वनी कुमार मल्होत्रा

मेरी आयु 66 वर्ष है । मैंने 1980 में रांची यूनीवर्सिटी से एमबीबीएस किया। एक साल की नौकरी के बाद मैंने कुछ निजी अस्पतालों में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम किया। 1983 में मैंने पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज में बतौर मेडिकल ऑफिसर ज्वाइन किया और 2012 में सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद से रिटायर हुआ। रिटायरमेंट के बाद मैनें लुधियाना के ओसवाल अस्पताल में और बाद में एक वृद्धाश्रम में काम किया। मैं विभिन्न प्रकाशनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी में लेख लिख रहा हूं, जैसे द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदुस्तान टाइम्स, डेली पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया, वॉवन'स एरा ,अलाइव और दैनिक जागरण। मेरे अन्य शौक हैं पढ़ना, संगीत, पर्यटन और डाक टिकट तथा सिक्के और नोटों का संग्रह । अब मैं एक सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और लुधियाना में अपनी पत्नी के साथ रह रहा हूं। हमारी दो बेटियों की शादी हो चुकी है।