धरती पोषण दे हमें
सागर निर्झर सर नदी, धरती सुंदर रूप।
रखें धरा को नम सदा, झील बावली कूप।।
धरती पर उगते रहे , वृक्ष झाडियाँ बेल।
प्रकृति सुंदरी रच रही, रुचिर नवल नित खेल।।
उर्वर वसुधा है कहीं, कहीं उड़े है रेत।
बंजर पथरी रेणुका, कहीं झूमते खेत।।
धरती पोषण दे हमें, करती सदा निहाल।
वन उपवन कानन हरे, निर्मल निर्झर ताल।।
हरी-भरी भू सम्पदा, धरती रही सजाय।
‘मलय’ धरा के मीत बन, वसुधा रहे बचाय।।
— प्रमोद दीक्षित मलय