मुक्तक/दोहा

धरती पोषण दे हमें

सागर निर्झर सर नदी, धरती सुंदर रूप।
रखें धरा को नम सदा, झील बावली कूप।।
धरती पर उगते रहे , वृक्ष झाडियाँ बेल।
प्रकृति सुंदरी रच रही, रुचिर नवल नित खेल।।
उर्वर वसुधा है कहीं, कहीं उड़े है रेत।
बंजर पथरी रेणुका, कहीं झूमते खेत।।
धरती पोषण दे हमें, करती सदा निहाल।
वन उपवन कानन हरे, निर्मल निर्झर ताल।।
हरी-भरी भू सम्पदा, धरती रही सजाय।
‘मलय’ धरा के मीत बन, वसुधा रहे बचाय।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com