संबंधित लेख
मैं मस्त फकीर
मैं मस्त फकीर मेरा कोई नहीं ठिकाना मुझे नहीं पता कल कहाँ जाना ? अपनों ने मुझे भुलाया मैंने भी अपनों का मोह मिटाया | छोड़ के सारा झमेला, मैं चला अकेला || मान मिले या अपमान मिले सब मन से स्वीकारूंगा इस झूंठे संसार में रहके धूनी कहीं रमाऊंगा? धन-दौलत का साथ मिले पल […]
चलो चलें अब गाँव की ओर
शहर में बढ़ गई अधिक आबादी वाहनों से होता कर्कश अब शोर पत्थर के महल में नींद है रूठी चलो चलते हैं अब गाँव की ओर शहर में बढ़ गई अधिक मंहगाई दुध दही का आकाल बड़ी जोर पाऊडर से काम कहाँ चलता चलो चलते हैं अब गाँव की ओर शहर में बढ़ गई […]
शुक्रिया
शुक्रिया काँटों भरे पर्वत को देख रही उबड़ खाबड़ कटीली झाड़ियों भरी राहें धूप के थपेड़े लू की वेदना सूखे कंठ और पथराई आँखें बैचेन हो जाती जब पानी न बरसता माटी की खुशबू को तरसता इंसान उन खुशबुओं की तरह जो बहारों के मौसम में दे जाते फूल ताजी खुशबुओं का उपहार पहाड़ी पर […]