दहशत फैली नगर नगर
सुलग रही है आग चतुर्दिक, दहशत फैली नगर नगर ।
कातिल बैठे घात लगाये, छीन रहे हैं सुख सारे ।
सभी जगह पर लूट-पाट है,गली गली में हत्यारे ।।
कहीं क्षोभ है कही क्रोध है, चिंता में जनता भारी
फैल रहीं है गुंडा-गर्दी, सहमे सहमे डगर डगर।।
हाल न पूछो माँ बहनों के, अस्मत खतरे में लगती ।
सहम उठी बम-बारूदों से, काँप रही सारी धरती ।।
मुश्किल में हर जीवन लगता, बढ़ी दिलों में है खाई ।
सारे जग में फैल रहा है, आखिर कैसा मचा ग़दर ।।
अंगारों पर चलना सीखे, हिम्मत तो रखनी होगी ।
सावचेत जनता को रहना, मुश्किल दूर तभी होगी ।।
माँ बहनों की करें सुरक्षा, अस्मत लूट नहीं पाये ।
गली-गली हो पहरेदारी, माँ-बहनों की करें कदर ।।
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला