मिली फ़ुरसत रात दिन की कशमकश से
तो बताएं गे कैसे गुज़री है यिह ज़िनदगी
हैरान बुहत होंगे सुन कर यिह दासतान
आँसू बैह सकते हैं दरद लाक है ज़िनदगी
बांटी बुहत ख़ुशियाँ हैं इस ज़िनदगी ने
ग़म देने से पीछे भी नही रही ज़िनदगी
हंसाया भी बुहत है इस ज़िनदगी ने
रुलाने से भी कम नही हुई यिह ज़िनदगी
बुलनदियों पर बुहत बार बिठाया है ज़िनदगी ने
पसतियों में गराने से बाज़ आई लही यिह ज़िनदगी
तराने ख़ुशियों के गाए हैं इस ज़िनदगी के साथ
नग़मे ग़मों के भी सुनाती रही है यिह ज़िनदगी
साथ जिस हमसफ़र ने दिया है इस ज़िनदगी में
उस को अछी तराह से जानती है यिह ज़िनदगी
हर रोज़ जाता तो नही बुत ख़ाने इबादत के लिये
अेतबार बुहत है अपने परवरदिगार पर है ज़िनदगी
ज़रूरत होती है जब अपने परमातमा की –मदन–
सनजीदगी से झुका देती जबीन को यिह ज़िनदगी
पुतले ख़ाक के हैं और ख़ाक से ही बनी है ज़िनदगी
बुहत ख़ास बना देती है जब भी चाहती है ज़िनदगी