घनाक्षरी छंद
तन पर रमा भस्म, गले नाग हार डाले,
जटा बीच गंगा धर, सृष्टी रखवारे हैं ।
भूत प्रेत नर नारी, तुम्हें ही सेवते सारे
महाकाल त्रिपुरारी, नाम ये तुम्हारे है।
जप कर नाम तेरा, खुशियों का हो बसेरा,
कण कण धरती का, तेरे ही सहारे है।
मृगछाला अंग सोहे, चेहरे का तेज मोहे
सती वाम अंग लेके, देव यू पधारे हैं ।
— अनुपमा दीक्षित भारद्वाज