गीतिका/ग़ज़ल

विधि का विधान

रखता सब  कुछ हाथ है मालिक भगवान।
विधि के  विधान का  आओ करें  सम्मान।
जो आया सो जाएगा, यह निश्चित तू जान।
रहा न कोई स्थिर यहाँ,  यही विधी विधान।
रचना रची  भगवान ने कितना सुंदर संसार,
सुक्ष्म से बली धरा पर  जीव  कई बलवान।
रवि उगे लिए लालिमा, होती अंधेरी है रात,
एक आती एक जा रही  ऋतुएं चलायमान।
जैसा कर्म करेगा बंदे, वैसा ही  फल पाएगा,
कान खोल कर सुन ले रे कहता गीता ज्ञान।
बीत गया सो बीत गया मुड़  नहीं आए हाथ,
आज है सो कल नहीं,  कल है  स्वप्न समान।
कहीं भूखा  रंक मर रहा, कहीं  अमीरी ठाठ,
कोई चोरी ठगी खा रहा, कैसा विधी विधान।
मात पिता भाई  बहन का न होता है सत्कार,
कलह रहे परिवार में है कलयुग की पहचान।
जो बोया सो काटेगा मानव चला कुल्टी चाल,
लौलुपता में साधु पड़ा  है बिक रहा भगवान।
जो हो रहा है सो हो रहा, उपर  वाले के खेल,
विधि के विधान का आओ करें सदा सम्मान।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995