रखता सब कुछ हाथ है मालिक भगवान।
विधि के विधान का आओ करें सम्मान।
जो आया सो जाएगा, यह निश्चित तू जान।
रहा न कोई स्थिर यहाँ, यही विधी विधान।
रचना रची भगवान ने कितना सुंदर संसार,
सुक्ष्म से बली धरा पर जीव कई बलवान।
रवि उगे लिए लालिमा, होती अंधेरी है रात,
एक आती एक जा रही ऋतुएं चलायमान।
जैसा कर्म करेगा बंदे, वैसा ही फल पाएगा,
कान खोल कर सुन ले रे कहता गीता ज्ञान।
बीत गया सो बीत गया मुड़ नहीं आए हाथ,
आज है सो कल नहीं, कल है स्वप्न समान।
कहीं भूखा रंक मर रहा, कहीं अमीरी ठाठ,
कोई चोरी ठगी खा रहा, कैसा विधी विधान।
मात पिता भाई बहन का न होता है सत्कार,
कलह रहे परिवार में है कलयुग की पहचान।
जो बोया सो काटेगा मानव चला कुल्टी चाल,
लौलुपता में साधु पड़ा है बिक रहा भगवान।
जो हो रहा है सो हो रहा, उपर वाले के खेल,
विधि के विधान का आओ करें सदा सम्मान।
— शिव सन्याल