लघु कथा – जोकर
कैंसर हॉस्पिटल में उस जोकर को देखकर लोग आपस में बात कर रहे थे। उस जोकर को देखकर तो मुझे वो फिल्म याद आती है -“मेरा नाम जोकर “। हुबहू वैसे ही वेशभूषा में यह जोकर मुझे अक्सर कैंसर हॉस्पिटल के बच्चा वार्ड में दिखाई दे जाता है। कैंसर हॉस्पिटल में आखिर इस जोकर का क्या काम? हां इसे मैं अक्सर देखता हूं।
अरे तुम्हें नहीं मालूम- यह जोकर उन बच्चों को खुश करने की कोशिश करता है जो कैंसर पीड़ित हैं उन्हें हंसाने की कोशिश करता है जो अपनी छोटी उम्र में दुख ही दुख झेल रहे हैं। उन को खुश रखने की कोशिश करता है जादू दिखाता है तरह-तरह के आवाज निकालता है।
भाई यह तो बड़ी अच्छी बात है आखिर वह व्यक्ति है कौन ? जो कैंसर पीड़ित बच्चों से इतनी लगाव रखता है।
भाई पेट के लिए आदमी क्या नहीं करता कुछ भी हो लेकिन यह कार्य तो अपने आप में काफी अनोखा है।
लेकिन वह जोकर तो किसी से कुछ नहीं लेता केवल बच्चों को हंसाकर चला जाता है । इसे मैं पिछले दो वर्षों से देख रहा हूं।
ऐसा क्या, चलिए आज उसी से उसके बारे में पूछते हैं।
कैंसर हॉस्पिटल के वार्ड से निकलते हुए जोकर से आज लोगों ने उससे आखिर पूछ ही लिया।
सुनिए भाई साहब ,आप कैंसर पीड़ित बच्चों को हंसाते हैं उन्हें खुश रखने की कोशिश करते हैं यह तो बहुत अच्छी बात है आपको इसकी प्रेरणा कहां से मिली?
हम बस यूं ही जानना चाहते हैं। अपने शो दिखाने की आप कितने पैसे लेते हैं?
जो मै शो करने का मैं कोई पैसे नहीं लेता? जोकर ने कहा
फिर आपका घर खर्च कैसे चलता है?
अब आप जानना ही चाहते हैं तो मैं आपको बता देता हूं । मैं नौसेना में लेफ्टिनेंट कमांडर के पद पर 17 साल की नौकरी किया । बचपन से ही मुझे जादू का शौक था इसीलिए नौसेना के जलसे और पारिवारिक पार्टियों में भी मैं जादू दिखाया करता था। लोग मुझे अपने कैंसर पीड़ित बच्चों को खुश देखने के लिए मुझे बुलाया करते थे। एक दिन मुझे मेरे एक परिचित ने अपने कैंसर पीड़ित बच्चे को जादू दिखाने के लिए बुलाया।
जिस बच्चे के लिए जादू मैं दिखाने वाला था उस बच्चे का अगले ही दिन निधन हो गया और उसकी इच्छा थी कि मरने के पहले मैं जादू देखना चाहता हूं । इस घटना के बाद से मैंने सेना से ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली ।और अब मैं कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया हूं ।
शर्मा जी कुछ आगे कह पाते। जोकर ने कहा – अच्छा मैं चलूं पास की ही कच्ची बस्ती में दो बच्चे कैंसर के पेशेंट है उनके चेहरे पर अब मुस्कान बिखेरने जा रहा हूं। शर्मा जी के आंखों के सामने से जोकर अब ओझल हो चुका था।
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— सतीश उपाध्याय