ग़ज़ल
नज़र के सामने होकर भी बहुत दूर लगा
न जाने क्यों मुझे वो शख्स कुछ मगरूर लगा
यक-ब-यक तूने उठाया जो पर्दा रूख से
चाँद पूनम का भी आगे तेरे बेनूर लगा
तुमने आँखों से जाने क्या पिलाया मुझको
मैं सारी दुनिया को मय के नशे में चूर लगा
मैं तो जुम्बिश-ए-मिजगां से ही मुजरिम ठहरा
वो कत्ल करके भी लोगों को बेकसूर लगा
— भरत मल्होत्रा