कविता – कोमल हूँ कमजोर नहीं
कोमल हूँ कमजोर नहीं अबला नहीं नारी हूँ
कहीं रूप मेरे धरा पर परिवार की धुरी हूँ
अपने अधिकारों के लिए लड़ती जीवन दायिनी हूँ
माँ ,बहन ,बेटी ,पत्नी के रूप में कर्तव्य निभाती हूँ
अपने सपनों को पूरा करने के लिए सबसे मैं लड़ जाती हूँ
परिवार की सच्ची सारथी जीवन सगनीं कहलाती हूँ
जीवन के हर पथ पर हर मोड़ साथ निभाती हूँ
शिक्षित होकर परिवार को चलाने में सहयोग देती हूँ
हर कार्य क्षेत्र से जुड़कर पुरुषों से कदम मिलाकर चलती हूँ
अपने सपनों को अब मैं साकार करती हूँ
राजनीति के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को दिखाती हूँ
नव युग का निर्माण करती अपनी राह खुद बनाती हूँ
हर अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज उठाती हूँ
कोमल हूँ कमजोर नहीं यहीं बात सबको बतलाती हूँ […..]
— पूनम गुप्ता