कविता

नन्हीं चिड़िया

भटक रहे हैं हम बेचारे, कहाँ कहाँ अब जायेंगे।
जरा बताओ हमको मानव, कैसे प्यास बुझायेंगे।।
सूरज दादा नहीं समझते, नीर सभी पी जाते हैं।
ग्रीष्म काल की इस बेला में, हर दिन वे तरसाते हैं।।
नीर भरे नयनों से कोयल, कू कू गीत सुनाती है।
मैना अरु गौरैया रानी, आकर गले लगाती हैं।।
चिंता में पक्षी हैं डूबे, कोई नीर पिलाओ ना।
तड़प तड़प कर मर जायेंगे, मेघ धरा में आओ ना।।
वृक्ष लतायें ठूँठ पड़े हैं, गर्म हवाएँ बहती हैं।
पीर हमारी देख धरा भी, सहमी सहमी रहती है।।
कोयल कहती गौरैया से, शांत रहो छोटी बहना।
हम मानव के घर जायेंगे, व्यथा हमारी तुम कहना।।
साहस भर कर जाते पक्षी, पीड़ा उन्हें सुनाते हैं।
कानन-वन की सारी बातें, चूँ चूँ वे बतलाते हैं।।
हाथ जोड़ते विनती करते, थोड़ा सा रख दो पानी।
प्यास बुझा कर उड़ जायेंगे, हम नन्हीं चिड़िया रानी।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]