चल मेरे साथी
केसरी ने आज मन में ठान लिया था कि छुटकू को और स्वयं को इस नरक से निकालेगी । इस मनवीर ने उसको बिलकुल कठपुतली समझ रखा है। आज तक इसके अवगुणों को सहन करती रही । निठल्ला कहीं का बस दारू पीकर अभी तक मुझे रौंदता था । दिन भर कमर तोड़ मेहनत करूं तब रोटी का जुगाड़ हो पाता. छुटकू को कभी दूध नसीब ना हुआ पर इसको दारू के लिये पैसे देने पड़ते। अब छुटकू भी बड़ा हो रहा था । कल तो हद ही हो गयी पता ना कहां से इस पतुरिया को ले आया जिसका नाम है छमिया । वह तो अवाक सी देखती रही मनवीर बड़ी ठसक से बोला- ‘अरी सुन केसरी आज से यह कमरे में सोयेगी और तू अपने लाडले को लेकर बाहर छप्पर में ।’
केसरी ने पूछा- ‘और इसके पेट का इन्तजाम कौन करेगा? एक तो तू निठल्ला, ऊपर से दूसरी औरत को और ले आया ।’ बस मनवीर ने डंडा उठाकर जैसे ही केसरी पर ताना नशे में तो धुत था ही, केसरी ने डंडा छीना और धुन दिया रूई की तरह और छमिया से कहा- ‘ले संभाल अपने मजनू को मैं तो अपना और अपने छुटकू का पेट आसानी से पाल सकती हूँ’ बस उठाया अपना सामान और ऊंट पर रखा, उस पर बैठाया छुटकू और बोली- चल मेरे साथी मुझे और छुटकू को लेकर वहीं करतब दिखायेगे और सुखी जीवन गुजारेगें ।
— डा. मधु आंधीवाल