कविता

गाँव की मिट्टी

बुला रही है गॉव की मिट्टी
वापस आ  जा मेरे परवाज
गाँव की मिट्टी में भी है  रोटी
झाँक कर देख खेतों में आज

छोड़ गॉव शहर से नाता जोड़ा
अपने माटी से क्यों रिश्ता तोड़ा
शहर के गलयो में जी रहा है आज
क्या हो गई तेरी घर की  वो ताज

नफरत कर जिस मिट्टी से है भागा
वो तेरी मातृभूमि है रे      अभागा
गाँव की मिट्टी है तेरी माँ के समान
अब भी अपनी तुँ ढुँढ     पहचान

तेरी पुरूखों की है ये मान संपदा
चोर लुटेरा ना ले जायेगा रे बन्दा
बुला रही है घर की तेरी  सोहरत
पाला है तेरी वंशज का    मूरत

अपनी खेतों में करना तुम मेहनत
पूरा कर देगा ये मिट्टी सब हसरत
हरा भरा खेत जब लहलहायेगा
मिट्टी से सोना उपज कर आयेगा

मिट्टी को मत समझो तुम कमजोर
इनमें पेट भरने की ताकत है पुरजोर
क्यों परेशान हो शहर का पाकर शोर
चल लौट चल अपने उस गाँव की ओर

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088