सामाजिक

महिलाओं की काबिलियत का अपमान मत कीजिए

इक्कीसवीं सदी के आधुनिक युग में भी कुछ लोगों की सोच महिलाओं के लिए नहीं बदली। उनको लगता है सदियों से चली आ रही समाज व्यवस्था परफ़ेक्ट है। मर्द बाहर जाकर काम करें और औरतें घर परिवार संभालें। वो ये नहीं सोचते कि इस महंगाई के ज़माने में दो सिरों को जोड़ने के लिए स्त्री का बाहर जाकर काम करना जरूरी बन गया है। आजकल की लड़कियों में वो क्षमता और काबिलियत है जो घर के साथ-साथ ऑफ़िस भी संभाल सकें।
आज के दौर में हर लड़की, हर महिला को आत्मनिर्भर होना चाहिए। भले ही पैसों की कमी न हो, पैसों के लिए न सही अपने अंदर छुपे हुनर और योग्यता से समाज में अपनी स्वपहचान बनाकर खुद को प्रस्थापित करने के लिए भी काम करना चाहिए। पर कई बार कुछ लोगों की मानसिकता देख ताज्जुब होता है। अगर किसी महिला का पति सक्षम है, और लाखों में कमाता है फिर भी वो महिला अगर काम करती है तो लोग उसे कहते है! तुम्हें काम करने की क्या जरूरत है? तुम्हारा पति तो पैसे वाला है। या उस महिला की पीठ के पीछे बोलते हुए कहेते है लगता है घर में जरूर कोई प्रॉब्लम होगी या पति कंजूस होगा तभी तो इतनी सुख साह्यबी होने के बावजूद काम करती है। या तो कुछ लोगों को तो महिला का घर से बाहर जाकर काम करने पर ही एतराज़ होता है, कहेंगे औरत ज़ात की जगह घर का चूल्हा चौंका तक होती है, बाहर जाकर काम करना शोभा नहीं देता।
कभी-कभी तो सुखी संपन्न घरवालों की सोच भी उसी मानसिकता पर अटक जाती है घर की औरत बाहर काम करने की बात करें तो कह देंगे, हमारे घर में पैसों की क्या कमी है? क्यूँ तुम्हें बाहर जाकर काम करना है? घर पर बैठो और परिवार संभालो। ये कहकर आप महिला का और उसके जेंडर का अपमान नहीं करते बल्कि उसकी मेहनत, उसकी शिक्षा, उसकी लगन, उसकी कला, उसकी स्मार्टनैस और योग्यता का भी अपमान कर रहे है। पति भले लाखों कमाता हो पर अपने बलबुते पर कमाए हजार रुपये पर हर औरत को नाज़ होता है।
पूछिए उन कुछ एक महिलाओं से जो पति की कमाई पर निर्भर होती है लाखों बार मन मारते जीना पड़ता है, अपनी पसंद की चीज़ खरिदने से सकुचाती है, और ज़्यादा कीमती चीज़ की तरफ़ देखने से भी कतराती है। क्या गलत है अगर अपनी काबिलियत पूरवार करते महिलाएँ आगे बढ़ती है, चार पैसे किमती है।
अपने मजबूत इरादों से औरत नामुमकिन को मुमकिन में बदलने की क्षमता रखती है। उसे बढ़ने दो, उनके हक का आसमान दो एक आत्मनिर्भर औरत अपने बच्चों को सुरक्षित जीवन देने के साथ-साथ आगे बढ़ने का मकसद हिम्मत और हौसला भी देती है। कामकाजी माँ के बच्चों को आत्मनिर्भरता की शिक्षा घर से ही मिलती है। मत रोको उनके कदमों को बंदीशों की बेड़ियों में कैद करके। कामकाजी महिला आज के ज़माने की जरूरत है।
ज़िंदगी दगाबाज़ है, वक्त कब क्या दिखलाएगा कोई नहीं जानता किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना पहली शर्त है। अगर पैसों के लिए महिला किसीकी मोहताज नहीं होगी तो हर मुश्किल का सामना आसानी से कर पाएगी। न माँ-बाप, न पति, न ससुराल वालें किसीके उपर निर्भर न रहकर अपनी जंग अपने दम पर लड़ सकती है। इसलिए बेटियों को पढ़ा लिखा कर इतनी काबिल बनाईये कि ज़िंदगी के हर पड़ाव पर खुद को सुरक्षित महसूस करें और हर परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहें।
— भावना ठाकर ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर