सामाजिक

सिनेमा और युवा

हिंदी फिल्मों ने समाज को कुछ अच्छी बातें भी दी हैं जैसे प्यार,फर्ज का पालन हिंदी भाषा का प्रचार,जो कुछ प्रांतों में जरूरी हैं। भाषाकीय ज्ञान भी कभी सही मिल जाता हैं तो कभी भाषा के हार्द के साथ खिलवाड़ भी किया जाता रहा हैं।
गानों में भी तो एकदम अलग सी शैलियों और शब्दों का चयन,कईं बार तो बेतुके शब्दों का चयन कर रचनाएं बनाई जाती हैं वह एक सामाजिक गुनाह हैं।
 लेकिन कुछ ऐसी बातें भी समाज को सिखाई हैं जो स्वस्थ समाज के लिए हानिकारक हैं।जैसे गुस्सा होने पर चीजों को तोड़ फोड़ कर गुस्से की अभिव्यक्ति करना,मारधाड़ कर अपना वर्चस्व बढ़ाना आदि।किंतु सब से खराब हैं अपने दुखों को भूलने के लिए विभिन्न प्रकार के नशों में डूब जाना।कोई नहीं सोचता कि नशा रहता हैं तब तक ही गम को भूल जानें के एहसास रहते हैं किंतु उतरते ही दुःख दोगुना हो सामने आ जाता हैं।
 जिसमे अपने व्यक्तित्व को उभारने के लिए सिगरेट पीने, कुछ विशेष शैली से धुंआ उड़ना आदि से युवाओं को अपने व्यक्तित्व को इस गलत तरीके से उभार ने को प्रेरित कर ने वाला नट गलत रास्ते पर ले जाता हैं।अगर नशा ही हर समस्या का हल होता तो समाज पूरा नशेड़ी बन के रह जाता ।वैसे अमर्यादित कपड़ों के बारे में कह सकते है।अभिनेत्रियां कम या नहीवत कपड़े पहन पटल पर आती हैं तो युवा लड़कियों ऐसे कपड़े पहनने के लिए प्रेरित करती हैं।जो सामाजिक अतिक्रमण बन कर रह जाता हैं।समाज से ज्यादा पारिवारिक संस्कारों का अवमूल्यन हित हैं।परिवार में घर्षण होने की वजह से अवसाद का उद्भव होता हैं।परिवार जनों में मनमुटाव की परिस्थिति पैदा हो सकती हैं।लड़कियां भी विद्रोही हो परिवार के बुजुर्गों को विषम परिस्थियों में का कर खड़ा कर देती हैं।ये आज का प्रश्न नहीं हैं सदा से ये संभावित परिस्थियां बनती रही हैं।
   युवाओं को ऐसी प्रेरणा मिले जिससे उनकी प्रगति हो,कुछ कर दिखाने की कामनाएं जागृत हो।जीवन के आयाम में कुछ शील और वैचारिक स्वास्थ्य का उद्भव हो ऐसी फिल्में समाज को बनाती हैं।किंतु आजकल की संकीर्ण विचारों वाली फिल्म युवाओं को,समाज का गलत मार्गदर्शन कर उसे बीमार बनाती हैं।
 सरकारों को भी जाग जाना चाहिएं,अच्छे विचारों वाली,देश भक्ति को दर्शाने वाली और समाज सुधारक फिल्मों का ही पर्दे तक पहुंचना जरूरी हैं न कि पतले से नशेड़ी नायक का पर्दे पर किसी से जीत जाना और युवाओं को वहीं प्रेरणा देना समाज के लिए अत्यंत  खतरनाक हैं।
— जयश्री बिर्मि 

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।