दोहे “बादल करते हास”
दोहे “बादल करते हास”
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बारिश का पीकर सलिल, आम हो गये खास।
पक जायेंगे आम अब, होगी मधुर मिठास।1।
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गरमी कुछ कम हो गयी, बादल करते हास।
नभ के निर्मल नीर से, बुझी धरा की प्यास।2।
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पशुओं को चारा मिले, इंसानों को अन्न।
बारिश आने से सभी, होंगे अब सम्पन्न।3।
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पुरवैया के साथ में, पड़ने लगी फुहार।
सूखे बाग-तड़ाग में, फिर आ गया निखार।4।
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माँगे से मिलता नहीं, दुनिया में सम्मान।
बड़बोलेपन से नही, बनता व्यक्ति महान।5।
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सबकी अपनी सोच है, सबके अपने भाव।
बिन माँगे मत दीजिए, अपने कभी सुझाव।6।
लिखते हैं अब सुख़नवर, अपने नये क़लाम।
मजदूरों को मिल गया, खेतों में अब काम।7।
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पुरवैया के साथ में, पड़ने लगी फुहार।
सूखे बाग-तड़ाग में, फिर आ गया निखार।8।
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अपनी धुन में मगन हो, बया बुन रही नीड़।
नभ में घन को देख कर, हर्षित काफल-चीड़।9।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)