मुक्तक/दोहा

दोहे “बादल करते हास”

दोहे “बादल करते हास”

बारिश का पीकर सलिल, आम हो गये खास।
पक जायेंगे आम अब, होगी मधुर मिठास।1।

गरमी कुछ कम हो गयी, बादल करते हास।
नभ के निर्मल नीर से, बुझी धरा की प्यास।2।

पशुओं को चारा मिले, इंसानों को अन्न।
बारिश आने से सभी, होंगे अब सम्पन्न।3।

पुरवैया के साथ में, पड़ने लगी फुहार।
सूखे बाग-तड़ाग में, फिर आ गया निखार।4।

माँगे से मिलता नहीं, दुनिया में सम्मान।
बड़बोलेपन से नही, बनता व्यक्ति महान।5।

सबकी अपनी सोच है, सबके अपने भाव।
बिन माँगे मत दीजिए, अपने कभी सुझाव।6।

लिखते हैं अब सुख़नवर, अपने नये क़लाम।
मजदूरों को मिल गया, खेतों में अब काम।7।

पुरवैया के साथ में, पड़ने लगी फुहार।
सूखे बाग-तड़ाग में, फिर आ गया निखार।8।

अपनी धुन में मगन हो, बया बुन रही नीड़।
नभ में घन को देख कर, हर्षित काफल-चीड़।9।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है