आरएसएस का अखण्ड भारत का स्वप्न साकार होने के लक्षण दिखने लगे हैं
देश का सबसे शक्तिशाली सांस्कृतिक स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंयेवक संघ (आरएसएस) अपने जन्म के समय से ही अखण्ड भारत की संकल्पना लिए हुए है। यहाँ तक कि संघ भारत के वर्तमान मानचित्र को मानता ही नहीं है, उसका भारत का आधिकारिक माानचित्र अखण्ड भारत का ही है। आरएसएस के अनेक संगठन अलग अलग क्षेत्रों में कार्यरत हैं। राजनैतिक क्षेत्र में पहले जनसंघ था, अब भारतीय जनता पार्टी है। संघ के पूर्णकालिक प्रचारक ही प्रायःकर राजनीति में दायित्व संभालते हैं। पूर्ण कालिक अर्थात् जिन्होंने गृहस्थ जीवन पूरी तरह त्याग दिया हो, वैवाहिक बंधनों से मुक्त हों, केवल संघ के लिए 24 घंटे बिना किसी यश, धन, वेतन की चाह के समर्पित रूप से कार्य करते हों। उन्हीं में से एक हैं श्री नरेन्द्र मोदी। श्री नरेन्द्र मोदी का राजनैतिक सफर अधिकतर लोग जानते हैं। नरेन्द्र मोदी जी की कार्य कुशलता और वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए आरएसएस को अब लगने लगा है कि उसका 98 वर्ष पुराना ’अखण्ड भारत’ का स्वप्ना साकार होने वाला है।
मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था ‘भारत के विभाजन का बीज तो उसी दिन पड़ गया था जिस दिन प्रथम हिंदू इस्लाम में दीक्षित हुआ था।’ इसी अलगाववादी सोच के आधार पर 14 अगस्त 1947 को आधिकारिक रूप से भारत को विभाजित कर दिया गया, परंतु यह भारत का प्रथम विभाजन नहीं था। इसके पहले भी भारत के अनेक वार टुकड़े किए गए। सर्वप्रथम 26 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मोहम्मद सहा अकबर ने ईरान के नादिरशाह से संधि कर उपगणस्थान (अफगानिस्तान) उसे सौंप दिया। आने वाले समय में क्रमशः नेपाल भूटान तिब्बत, ब्रह्मदेश (म्यान्मार) और पश्चिमी एवं पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश भारत से अलग कर दिए गए। स्वतंत्रता पश्चात् सन् 1947 और सन् 1952 में आज के पाक अधिकृत लद्दाख तत्कालीन राज्य कर्ताओं ने थाल में सजाकर पाकिस्तान और चीन को दे दिए। चीन अब अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार जता रहा है, और करोड़ों बांग्लादेशी घुसपैठिए पूर्वांचल समेत सारे देश पर दृष्टि गड़ाए हैं। ऐसे में महर्षि अरविंद का यह कथन स्मरण रखना होगा ‘‘यह राष्ट्र धर्म के साथ पैदा हुआ, उसके साथ वह चलता है और उसी के साथ वह बढ़ता है। जब सनातन धर्म का क्षरण होता है तब राष्ट्र का क्षरण होता है।’’
अखण्ड भारत यानी सन् 1739 से पहले का भारत। पहले ईरान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यान्मार (बृह्मदेश), श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान भारत के अंग थे।
अखंड भारत का एजेंडा आरएसएस के लिए हमेशा सर्वोपरि रहा है। इस बार संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इसे लेकर बड़ा बयान दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने हरिद्वार में कहा कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है। इतना ही नहीं उन्होंने कहा, वैसे तो 20 से 25 साल में भारत अखंड भारत होगा। लेकिन अगर हम थोड़ा सा प्रयास करेंगे, तो स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद के सपनों का अखंड भारत 10 से 15 साल में ही बन जाएगा। इसे कोई रोकने वाला नहीं है। जो इसके रास्ते में आएंगे वह मिट जाएंगे। आरएसएस प्रमुख ने कहा, जिस प्रकार भगवान कृष्ण की उंगली से गोवर्धन पर्वत उठ गया था, उसी तरह संतों के आशीर्वाद से भारत फिर से अखंड भारत जल्द बनेगा। इसे कोई रोकने वाला नहीं है, लेकिन आमजन थोड़ा सा प्रयास करेंगे, तो स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद के सपनों का अखंड भारत 10 से 15 साल में ही बन जाएगा।
अगले 23-24 वर्षों के बाद स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष आ जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के शताब्दी महोत्सव की तैयारी अभी से कर रहे हैं, शनैः शनैः उसका रोड मैप बना रहे हैं। इसमें कोई बड़े आश्चर्य की बात नहीं कि विपक्षी दलों की वर्तमान जैसी हालत आगे भी रही तो भाजपा भारत का शताब्दी समारोह भी अपने शासनकाल में मना ले। या बीच के किसी पंचवर्षीय काल में अन्य किन्हीं पार्टियों का मिलाजुला शासनकाल आ भी जाये तो पुनः भाजपा स्थापित हो जाये।
वर्तमान की वैश्विक परिस्थितियाँ भारत के अनुकूल हैं। जिन्हें निर्मित करने में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का महत्वपूर्ण योगदान है। और पूर्व में अखण्ड भारत के अंग रहे पड़ोसी देशों की हालत बहुत खराब है। ये देश वर्तमान में भारत की सम्पन्नता, अमन-चैन, लोकतांत्रिक व्यवस्था, सर्वधर्म समभाव, कुशल नेतृत्व देखकर गाहे-बगाहे कह बैठते हैं कि वे भारत के ही अंग होते तो ठीक था। श्रीलंका, म्यान्मार और पाकिस्तान आर्थिक रूप से कंगाल हो चुके हैं। ईरान, अफगानिस्तान की हालत कुछ अच्छी नहीं है। ये देश मानने लगे हैं कि भारत ही इन्हें कंगाली से उबार सकता है।
इस बीच भारत ने म्यान्मार और पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राईक करके अपने दम-खम को द्योतित कर दिया है। श्रीलंका में तो तमिल विद्रोह को शांत करने के लिए भारत शांतिसेना भेजकर अपने हजारों सैनिकों को शहीद कर चुका है। साथ ही जम्बूकश्मीर से धारा 370 को हटाकर मील का पत्थर गाड़ दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि विश्वगुरु के रूप में स्थापित होती जा रही है। आज अधिकतर देश भारत से मित्रता चाहते हैं। भारत की कूटनीति का सब लोहा मानने लगे हैं। आपात स्थितियों में अन्य देशों में फँसे भारतीय नागरिकों को भारत में सकुशल वापिस लाया गया है। स्वदेशी उत्पाद से भारत स्वावलम्बी हो रहा है। रक्षा-उपकरणों के क्षेत्र में वह उत्पादक ही नहीं, निर्यातक भी बन गया है। कोविड महामारी से निपटने में अब्बल रहा है, उसकी बैक्सीन अन्य देशों को देकर सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ा चुका है। किसी देश को आपतकाल में सहयोग देकर भारत आदर्श उपस्थित करता है, भले ही वह असहयोगी देश ही क्यों न रहा हो। भारत अपनी उस नीति पर दृढ है और खरा भी उतरा है कि वह किसी देश पर पहले हमला नहीं करेगा। ये सब खूबियाँ भारत को एक श्रेष्ठ देश स्थापित करती हैं।
अब शनैः शनैः वैश्विक परिस्थितियाँ स्वयं ऐसीं निर्मित होतीं जा रहीं हैं कि आरएसएस की लगभग एक शतक पुरानी ‘अखण्ड भारत’ की संकल्पना अगले 15 से 25 वर्षों में साकार होने के आसार दृष्टिगत होने लगे हैं।
— डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’