कविता

गौमाता से गैर होते रिश्ते

अभी तक हमारा आपका नाता रिश्ता है
मेरे लिए तुम्हारा दिया माता संबोधन
दिल में उतरकर छू जाता है,
आँखें नमकर जाता है।
पर आज तुम लोगों के लिए
हमारा महत्व कम होता जा रहा है,
हमारे खानदान का मान भी
लगातार कम होता जा रहा है
आपके अपने घर की दहलीज पर
अब हमें रहने नहीं दिया जा रहा है।
हमारे सामाजिक, धार्मिक महत्व को
आधुनिकता के नाम पर पीछे ढकेला जा रहा है
तैंतीस कोटि देवी देवताओं का वास मुझमें होता है
नयी पीढ़ी को यह ज्ञान नहीं दिया जा रहा है
हमारा नियमित श्रद्धा से स्पर्श भी
तुम्हें रोगमुक्त कर देता है
हमारा दूध दही घी ही नहीं
मूत्र गोबर भी बहुत काम आता है
औषधि का भी काम करता हैं,
पर आज तुम सब ही हमें
अपने से दूर कर रहे हो
अपनी बरबादी की नींव खुद रख रहे हो
हमें माता कहकर गुमराह कर रहे हो
मरने के लिए हमें अपने घर से निकाल रहे हो
जब अपने माँ बाप के तुम सब नहीं हो रहे
तब हमारे होगे ये हम भी अब नहीं सोच रहे।
पर तुम्हारी चिंता तो हमको अब भी है
आखिर तुम सब हमें मां जो कह रहे हो,
यह अलग बात है कि हमारे रिश्ते भी अब
पूरी तरह गैर ही नहीं अंजान से कर रहे हो।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921