स्टेजिंग एरिया : मानवीय व्यवहार, कर्तव्य एवं संवेदनाओं का दस्तावेज
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स्टेजिंग एरिया में कुल 44 कहानियां हैं। लघु आलेख में सभी की चर्चा सम्भव नहीं, पर बानगी के तोर पर कुछ कहानियां उठा रहा हूं। ‘खौफ का मंजर’ से किताब आरंभ होती है। ‘हमारा दफ्तर तुड़ का पेड़’ प्रकृति के सान्निध्य सुख एवं संरक्षण का संकेत करती है तो ‘गरिमामयी नेपाली दंपति’ व्यक्ति के शालीन व्यवहार की मिठास और महक पूरे सेंटर की हवा में घुल मानवीय व्यवहार के सात्विक पक्ष का दर्शन कराती है। ओखलकांडा से रामनगर सेंटर पहुंचे भूखे-प्यासे, थके-हारे, बेहाल, निराश ‘वो बीस लोग’ एरिया से जाते समय स्नेह, कृतज्ञता, उम्मीद की चादर ओढ़ खुशी-खुशी सुरक्षित अपने घरों की ओर आशीषते हुए गाड़ियों में बैठ रहे हैं। रेड जोन मुरादाबाद से आये नव विवाहित युगल को एक साथ क्वारंटाइन करना एक मर्म स्पर्शी कहानी है। क्या उन्होंने कभी सोचा होगा कि उनके वैवाहिक जीवन का आरंभ क्वारंटाइन सेंटर में एक साथ रहने से होगा। ‘पीपीई किट में निकाह’ भी इसी बुनियाद पर रची गयी है। ‘मैं खुद पर आग घाल दूंगी’ कहानी परिवारिक स्नेह, आत्मीयता एवं दायित्व के सीवन की बखिया उधेड़ देती है कि किस प्रकार एक मां दिल्ली से आई बेटी को नियमानुसार सेंटर पर नहीं बल्कि होम क्वारंटाइन करने की धमकी देते हुए स्वयं को आग लगा देने की बात कहती हैं और जब रैपिड टेस्ट में बेटी पाज़िटिव निकलती है तो उसका व्यवहार बिल्कुल बदल जाता है, वह सेंटर से गायब हो जाती है। इसमें जो सवाल उभरे हैं, वे कोरोना संकट समाप्त हो जाने के बाद भी जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे कि कैसे स्वयं के जीवन पर संकट आता देख व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है। ऐसी ही कहानी ‘प्लीज हमें क्वारंटाइन कर दो’ है जिसमें गोवा से लौट रहे दो बेटों को मां फैसिलिटी सेंटर में दस दिन बिता देने के बाद निगेटिव रिपोर्ट लेकर आने पर ही घर में घुसने देने की बात कहती है। ‘नेकी कर, डांट खा’ भी उसी भावभूमि की है कि बेटे के दिल्ली से घर वापस आने पर खुश होने की बजाय पिता कहता है कि उसके लिए घर पर कोई जगह नहीं है। विचार करें, उस बेटे के मन में अपने पिता के प्रति कैसा भाव बना होगा। एक अन्य मार्मिक कहानी ‘मुक्तिबोध : दादा, पिता, पुत्र’ जीवन की नश्वरता एवं क्षणभंगुरता का संदेश देती है कि कैसे सुशिक्षित सम्भ्रांत धनाढ्य परिवार की तीन पीढ़ी कोरोना से संक्रमित हो तीन अलग जगहों में हैं। दादा की दिल्ली के अस्पताल में मृत्यु। पिता-पुत्र बच तो जाते हैं पर कोरोना का घाव उन्हें उम्रभर सालता रहेगा। ‘भैया मुझे बचा लो’ अंतिम समय तक संक्रमण को छिपाये रखने की मानसिकता बयां करती है तो ‘भय ही मौत, हिम्मत ही जिंदगी’ व्यक्ति के नकारात्मक और सकारात्मक सोच के प्रभाव और परिणाम की कथा है। ‘दिल्ली से लौटे दो दोस्त’ की विषयवस्तु रुला देती है कि कैसे वे दोनों छह साल पहले एक बैग लेकर दिल्ली गये, मेहनत से अपना रेस्टोरेंट खोला और कोरोना के कारण सब कुछ गंवाकर उसी एक बैग के साथ घर लौट आते हैं, टूटे मन और खाली हाथ। अन्य कहानियों में कल ड्यूटी पर कब आना है, टंकी का ढक्कन, उनियाल साहब का लंगर, रिस्क, फौज की भर्ती, दादा गया पर पोता न आया, हैदराबाद से आया हारुन, सितारा का सरदार, इधर उधर की सब-काम की बात कब आदि कहानियां भी पाठक की चिंतन दृष्टि को विस्तार देती हैं।
अंत में इतना कह सकता हूं कि इन कहानियों में जीवन की तमाम सच्चाईयों को सहेजे मन के अंतर्द्वंद्व जीवन संघर्ष के फलक पर उद्घाटित हुए हैं। मुद्रण एवं कागज अच्छा है। भाषा आमजन के परिवेश की है जो पाठक को जोड़ती है। कहानी न होकर भी कथातत्व से ओतप्रोत हर विवरण मोहक बन पड़ा है। साहित्य जगत में ‘स्टेजिंग एरिया’ निश्चित रूप से न केवल अपनी पुख्ता पहचान स्थापित करेगी बल्कि पाठकों द्वारा लेखक की पूर्व बहु प्रशंसित कृति ‘हैंडल पैंडल’ की भांति समादृत होगी, ऐसा मेरा दृढ विश्वास है।
— प्रमोद दीक्षित मलय
कृति : स्टेजिंग एरिया
रचनाकार – मितेश्वर आनंद
प्रकाशक : काव्यांश प्रकाशन, ऋषिकेश
पृष्ठ – 134, मूल्य – ₹200/-