पुस्तक समीक्षा

स्टेजिंग एरिया : मानवीय व्यवहार, कर्तव्य एवं संवेदनाओं का दस्तावेज

कोरोना संकट के कारणों एवं संक्रमण की रोकथाम के उपायों पर कुछ पुस्तकें आई हैं। पर मानव की सोच, मनोविज्ञान एवं उसके कार्य-व्यवहार में हुए परिवर्तन पर कुछ खास नहीं लिखा गया। इस रिक्त स्थान की सम्यक पूर्ति की है काव्यांश प्रकाशन, ऋषिकेश से प्रकाशित मितेश्वर आनंद लिखित ‘स्टेजिंग एरिया’ ने, जो पिछले दिनों मुझ तक पहुंची। नाम कुछ अलग सा दिखा, तो उत्सुकतावश इसके पृष्ठ पलटने लगा। महसूस हुआ कि पुस्तक में कोरोना काल में रामनगर, उत्तराखंड में प्रवासियों की सुविधा हेतु बनाए गए स्टेजिंग एरिया में अपनी ड्यूटी करते हुए लेखक मितेश्वर आनंद ने वहां घटी सच्ची घटनाओं का आधार लेकर कल्पना के रेशों से एक सुंदर चादर बुनी है जो ‘स्टेजिंग एरिया’ नाम से लोक सम्मुख प्रस्तुत हुई है। पृष्ठ पलटते हुए एक कहानी ‘कपूत’ पर नजरें टिक गयीं। चाय की चुस्कियों के साथ कहानी का भी आस्वादन करने लगा। उस कहानी में बताया गया कि किस प्रकार एक उच्च शिक्षित बड़ा वेतन पैकेज पाने वाले व्यक्ति द्वारा क्वारंटाइन सेंटर भेजने के अधिकारियों के निर्णय का समर्थन करने पर अपनी मां को जोरदार थप्पड़ जड़ दिया जाता है। इस कहानी ने मुझे पूरी किताब एक ही बैठक में पढ़ने को विवश कर दिया। दरअसल इस कहानी से कुछ नये संदर्भ खुले कि ‘स्टेजिंग एरिया’ में कोरोना संकट से उपजे हालात में मानव के सामान्य व्यवहार एवं जीवन दृष्टि में हुए आमूलचूल परिवर्तन का अंकन है। इसमें मानव के कार्य-व्यवहार की परतों में दबी संवेदनाओं एवं प्रवृत्तियों के बदलाव की कथा है। इसमें करुणा, धैर्य, आत्मीयता के हरिशंकरी विटप कुंज की सुखद शीतल छांव है तो साहस, सहयोग, सहानुभूति, सहकार, शालीनता, सामंजस्य एवं समन्वय का सप्तवर्णी इंद्रधनुष भी। सेवा-साधना का निर्मल भाव है तो  तमाम चुनौतियों से जूझते मन में संकल्प की जाज्वल्यमान आग भी। ‘स्टेजिंग एरिया’ में कोरोनाजनित आसन्नसंकट के रूप में उपस्थित मृत्यु का भय एवं डर हर चेहरे पर खुली किताब सा चस्पा था जिसे कोई भी आसानी से पढ़ सकता था। वास्तव में ‘स्टेजिंग एरिया’ कोरोनाकाल का आधार लेकर रची-बुनी गई उन घटनाओं का एक प्रामाणिक दस्तावेज है जिसका लेखक स्वयं साक्षी रहा है। इसलिए कह सकते हैं कि ‘स्टेजिंग एरिया’ मानवीय व्यवहार, कर्तव्य एवं संवेदनाओं का एक ऐसा कोलाज है जिसमें कोरानाकाल के वे सभी चित्र समाहित हैं जिनमें सेवा, सावधानी, सख्य, समता-समरसता के भाव प्रकट हुए हैं तो वहीं वे चित्र भी जगह पा सके हैं जिनमें अपने कर्तव्य पथ पर अविचल साधनारत कर्मचारियों के प्रति गुस्सा, व्यर्थ विवाद, दबाव बनाने की रणनीति, नियमोल्लंघन की मानसिकता एवं  आधारहीन तर्क शामिल हैं। पुस्तक पढ़ते हुए पाठक उस अनजानी दुनिया से रूबरू होता है जिसे उसने कभी देखा-सुना नहीं था। वह खोखले आदर्शों, नैतिकता के पूर्वग्रहों के टूटते शिखरों से परिचित होता है तो वहीं व्यक्तियों के दोहरे आचरण, झूठे बड़प्पन से भी। सामाजिक आत्मीय सम्बन्धों एवं रिश्ते-नातों की उस खोखली बुनियाद से परिचित होता है जहां अपने संकट में साथ छोड़ देते हैं और अनजाने अपरिचित लोग जिम्मेदारी के साथ छांव बन साथ खड़े हो जाते हैं। कह सकता हूं कि ‘स्टेजिंग एरिया’ कोरोना काल को लेकर एक बिल्कुल अलग एवं नवीन दृष्टि से किया गया लेखन है जो संकट के समय व्यक्ति के व्यवहार एवं सोच में हो रहे परिवर्तन को रेखांकित करता है। निश्चित रूप से यह पुस्तक पढ़ी-सराही जायेगी।
          स्टेजिंग एरिया में कुल 44 कहानियां हैं। लघु आलेख में सभी की चर्चा सम्भव नहीं, पर बानगी के तोर पर कुछ कहानियां उठा रहा हूं। ‘खौफ का मंजर’ से किताब आरंभ होती है। ‘हमारा दफ्तर तुड़ का पेड़’  प्रकृति के सान्निध्य सुख एवं संरक्षण का संकेत करती है तो ‘गरिमामयी नेपाली दंपति’ व्यक्ति के शालीन व्यवहार की मिठास और महक पूरे सेंटर की हवा में घुल मानवीय व्यवहार के सात्विक पक्ष का दर्शन कराती है।‌ ओखलकांडा से रामनगर सेंटर पहुंचे भूखे-प्यासे, थके-हारे, बेहाल, निराश ‘वो बीस लोग’ एरिया से जाते समय स्नेह, कृतज्ञता, उम्मीद की चादर ओढ़ खुशी-खुशी सुरक्षित अपने घरों की ओर आशीषते हुए गाड़ियों में बैठ रहे हैं। रेड जोन मुरादाबाद से आये नव विवाहित युगल को एक साथ क्वारंटाइन करना एक मर्म स्पर्शी कहानी है। क्या उन्होंने कभी सोचा होगा कि उनके वैवाहिक जीवन का आरंभ क्वारंटाइन सेंटर में एक साथ रहने से होगा। ‘पीपीई किट में निकाह’ भी इसी बुनियाद पर रची गयी है। ‘मैं खुद पर आग घाल दूंगी’ कहानी परिवारिक स्नेह, आत्मीयता एवं दायित्व के सीवन की बखिया उधेड़ देती है कि किस प्रकार एक मां दिल्ली से आई बेटी को नियमानुसार सेंटर पर नहीं बल्कि होम क्वारंटाइन करने की धमकी देते हुए स्वयं को आग लगा देने की बात कहती हैं और जब रैपिड टेस्ट में बेटी पाज़िटिव निकलती है तो उसका व्यवहार बिल्कुल बदल जाता है, वह सेंटर से गायब हो जाती है। इसमें जो सवाल उभरे हैं, वे कोरोना संकट समाप्त हो जाने के बाद भी जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे कि कैसे स्वयं के जीवन पर संकट आता देख व्यक्ति का व्यवहार  बदल जाता है। ऐसी ही कहानी ‘प्लीज हमें क्वारंटाइन कर दो’ है जिसमें गोवा से लौट रहे दो बेटों को मां फैसिलिटी सेंटर में दस दिन बिता देने के बाद निगेटिव रिपोर्ट लेकर आने पर ही घर में घुसने देने की बात कहती है। ‘नेकी कर, डांट खा’ भी उसी भावभूमि की है कि बेटे के दिल्ली से घर वापस आने पर खुश होने की बजाय पिता कहता है कि उसके लिए घर पर कोई जगह नहीं है।‌ विचार करें, उस बेटे के मन में अपने पिता के प्रति कैसा भाव बना होगा। एक अन्य मार्मिक कहानी ‘मुक्तिबोध : दादा, पिता, पुत्र’ जीवन की नश्वरता एवं क्षणभंगुरता का संदेश देती है कि कैसे सुशिक्षित सम्भ्रांत धनाढ्य परिवार की तीन पीढ़ी कोरोना से संक्रमित हो तीन अलग जगहों में हैं। दादा की दिल्ली के अस्पताल में मृत्यु। पिता-पुत्र बच तो जाते हैं पर कोरोना का घाव उन्हें उम्रभर सालता रहेगा। ‘भैया मुझे बचा लो’ अंतिम समय तक संक्रमण को छिपाये रखने की मानसिकता बयां करती है तो ‘भय ही मौत, हिम्मत ही जिंदगी’ व्यक्ति के नकारात्मक और सकारात्मक सोच के प्रभाव और परिणाम की कथा है। ‘दिल्ली से लौटे दो दोस्त’ की विषयवस्तु रुला देती है कि कैसे वे दोनों छह साल पहले एक बैग लेकर दिल्ली गये, मेहनत से अपना रेस्टोरेंट खोला और कोरोना के कारण सब कुछ गंवाकर उसी एक बैग के साथ घर लौट आते हैं, टूटे मन और खाली हाथ। अन्य कहानियों में कल ड्यूटी पर कब आना है, टंकी का ढक्कन, उनियाल साहब का लंगर, रिस्क, फौज की भर्ती, दादा गया पर पोता न आया, हैदराबाद से आया हारुन, सितारा का सरदार, इधर उधर की सब-काम की बात कब आदि कहानियां भी पाठक की चिंतन दृष्टि को विस्तार देती हैं।
         अंत में इतना कह सकता हूं कि इन कहानियों में जीवन की तमाम सच्चाईयों को सहेजे मन के अंतर्द्वंद्व जीवन संघर्ष के फलक पर उद्घाटित हुए हैं। मुद्रण एवं कागज अच्छा है। भाषा आमजन के परिवेश की है जो पाठक को जोड़ती है।‌ कहानी न होकर भी कथातत्व से ओतप्रोत हर विवरण मोहक बन पड़ा है। साहित्य जगत में ‘स्टेजिंग एरिया’ निश्चित रूप से न केवल अपनी पुख्ता पहचान स्थापित करेगी बल्कि पाठकों द्वारा लेखक की पूर्व बहु प्रशंसित कृति ‘हैंडल पैंडल’ की भांति समादृत होगी, ऐसा मेरा दृढ विश्वास है।
—  प्रमोद दीक्षित मलय
कृति : स्टेजिंग एरिया
रचनाकार – मितेश्वर आनंद
प्रकाशक : काव्यांश प्रकाशन, ऋषिकेश
पृष्ठ – 134, मूल्य – ₹200/-

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]