कविता

इश्क में डूबती नैया

इश्क में उसके पड़कर हम भी खाने लगे पान

गली में उसके खोल दी गोलगप्पे और समोसे की दुकान
रोज़ आने लगी दुकान पर गोलगप्पे खाने
हम भी लगे उसको रोज़ फ्री में खिलाने
बिना देखे हमारी नज़रें करने लगी परेशान
सुबह छ: बजे ही खोलने लग पड़े हम दुकान
वह भी सुबह सुबह ही दुकान पर आने लगी
नज़रों से कातिल तीर हम पर चलाने लगी
धीरे धीरे हम एक दूसरे की नज़रों में खो गए
कभी न बिछुड़ने की कसमें खाई इक दूजे के हो गए
चोरी छुपे कभी बाजार तो कभी सिनेमा चले जाते
बहुत मस्ती में दोनों अपना समय बिताते
यह बातें कहां छुपती हैं मोहल्ले में चर्चा होने लगी
चुपके से आकर दुकान में वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगी
बोली अब हर तरफ हमारे इश्क के चर्चे होने लगे हैं
इधर रोज का फ्री खिलाकर मेरी आमदनी भी कम होने लगी
इश्क में पड़कर हम उस पर कुछ ज़्यादा ही मरने लगे
पैसा पानी की तरह बहा कर उसको खुश करने लगे
दुकान से भागे रहते छोड़ दी औरों के भरोसे
ग्राहक कम हो गए बिकने बन्द हो गए समोसे
एक दिन उसका भाई भी दुकान पर आया
इश्क का बहुत शौक है कहकर मुझे धमकाया
अब तो रोज़ जब देखो तब आ जाता था
गोलगप्पे समोसे खाता और बिना पैसे दिए चला जाता था
हमारी ज़ुबान बन्द थी क्योंकि इश्क का बुखार चढ़ा था
उसका भाई देखने में भी हमसे हट्टा कट्टा चार गुना बड़ा था
पैसे मांगता तो वैसे ही कचूमर निकाल देता
रोज़ फ्री के समोसे और गोलगप्पे खाने पर अड़ा था
एक दिन जिगरी दोस्त रामू रास्ते में मिल गया
कहा तू जिस लड़की से इश्क लड़ाता है फ्री में खिलाता है
भूल जा उसको वह तेरी कभी हो नहीं सकती
क्योंकि उसका तो मोहल्ले के पांच छ: लड़कों से नाता है
ऐसा सुनते ही मुझे चक्कर सा आने लगा
दिल जो उछलता था बार बार अब बैठ जाने लगा
एक साल से फ्री के समोसे गोलगप्पे खा रही है
उसकी बेबफाई पर मुझको गुस्सा बहुत आने लगा
अगले दिन पीछा करता उसका पहुंच गया बाजार
देखा तो कुछ लड़के कर रहे थे उसका इंतज़ार
सबके गले मिली कभी हंसती कभी ठहाके लगाती
उसकी हंसी अब मेरे कलेजे पर मूंग दल जाती
पीछे वाले टेबल पर बैठ गया सुनने लगा उनकी बात
उनकी बातें सुन कर काबू में नहीं रहे मेरे जज़्बात
उनसे कह रही थी वह मुझे फ्री में सब कुछ खिलाता है
खाओ पियो ऐश करो मेरे बाप का क्या जाता है
दूसरे दिन सुबह उठ कर पहुंचा सीधा अपनी दुकान
डूबा कर इश्क में नैया इकट्ठा लगा करने समान
सोच रहा था ज़िन्दगी बहुत लेती है इम्तिहान
टूट गया था दिल हो गया था लहूलुहान
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र