गीत/नवगीत

मेला

एक दिन सबको,जाना जरूर है
फिर किस बात का, इतना गुरूर है
दो दिन का मेला है,हॅस कर जी ले
चाहतों को कम कर, दुर्भाव पी ले।

ईर्ष्या, वैमनस्य, को दूर भगाएं
सबके दिलों में, जगह बनाएं
जितना हो संभव, सादगी अपनाएं
हर मोड़ का, जी भर आनंद उठाएं

आलोचनाओं को, दिल पर न लें
दो दिन का मेला है,हॅस कर जी ले

बड़े हैं वे, कुछ कह दिया तो क्या
चाहते भला हमारा,सोचो तो जरा
उनकी बातों को, अन्यथा न लें
बात उनकी मानें और शुक्रिया कहें

उनके उपदेशों का, रसपान पी लें
दो दिन का मेला है,हॅस कर जी ले

धन दौलत पर न, इतना इतराओ
सच्चाई का रास्ता, ही अपनाओ
समय कब ,कैसी,करवट लेगा
जो आज है, वह कल न रहे गा

ज़्यादा किसी का ,एहसान क्यों लें
दो दिन का मेला है,हस कर जी ले

छोटी छोटी बातों में, खुशियां ढूंढें
जल्दी न हम, अपनों से रूठें
उपलब्ध साधनों से, काम चलाएं
ज्ञान के दीपक से, प्रकाश फैलाएं

नन्ही सी बात पर, न हों नीले पीले
दो दिन का मेला है,हॅस कर जी ले

मौका मिला है,कुछ सत्कर्म कर लें
अधर्म को त्यागें, सद्भाव भर लें
जीवन की इस, स्वर्णिम बेला में
कड़वाहट छोड़ें , उल्लास भर लें

करलें मन निर्मल, अमृत रस पी लें
दो दिन का मेला है,हॅस कर जी ले

चाहतों को कम कर, दुर्भाव पी ले
दो दिन का मेला है,हॅस कर जी ले

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई