कविता – प्रथम गुरु हैं माँ
माँ की परवरिश का नही कोई मोल
माँ ही तो है, पहली गुरु अनमोल
अशिक्षा अंधेरा तो उजाला है शिक्षा
शिक्षा से सीखों तुम खगोल भूगोल ।।
कहती है माँ, किताब के पन्ने खोल
बताती है माँ कैसी होती धरती गोल
मजदूर हूँ, मजबूर नहीं कहती है
माँ ही सिखाती ज्ञान के मोती अनमोल ॥
माँ ही सिखाती है, जीवन के बोल
जीवन की रेल में शिक्षा है अनमोल
शिक्षा से बड़ा नहीं है कोई खज़ाना
खुशनसीब है वह जो जाने इसका मोल ।।
— गोपाल कौशल ‘भोजवाल’