गीतिका
शाम ढले तुम घर आना प्रिय,
आकर दिल में न जाना प्रिय!
तुमसे इश्क़ कर बैठे हैं बेहद,
रूठ भी जाएं तो मनाना प्रिय!
वक़्त का क्या भरोसा हमदम,
अपना बनाकर न भुलाना प्रिय!
आती नहीं हमें अदाएं सनम,
हमारी सादगी से निभाना प्रिय!
तुम्हारी जुदाई न सह पाएंगे ,
छोड़कर न सितम ढाना प्रिय!
— कामनी गुप्ता