कविता

मायका और ससुराल

बहुत फर्क है दोनों में
मायका हो या हो ससुराल
एक विवाहिता ही बता सकती है
मायका अच्छा था या अच्छा है ससुराल
यदि ससुराल पक्ष के लोग हों अच्छे
तो जाती है नारी अपना मायका भूल
सास ससुर में मिल जाते हैं माता पिता
खुश रहती है चाहे परिस्थितियां हों प्रतिकूल
मायके में कोई रोक टोक नहीं होती
ससुराल में बंदिशें होती हैं हज़ार
अपना घर छोड़ कर नया घर बसाती है
बच्चों के लिए कुछ भी करने को रहती तैयार
नई जिंदगी की शुरुआत होती है ससुराल से
अपने बच्चों संग खेलती मुस्कुराती है
भूल नहीं पाती मायके में बिताए वह दिन
माता पिता की याद बहुत सताती है
ननद यदि अच्छी हो तो
भाभी को मिल जाता है साथ
कट जाता सफर ज़िन्दगी का
लेकर पिया का हाथ में हाथ
देवर और सास से बनता है गहरा नाता
भाई मिल जाता देवर में सास में मिल जाती है माता
हमारे चाहने न चाहने से होता कुछ नहीं
होता वही है जो करता है विधाता
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र