इश्क की दास्तान खामोश है ज़बान क्या कहें,
ग़म का तूफान सीने में दबा रखा है क्या कहें।
मुझे आज़मा रहा है कोई रुख बदल बदल कर,
इस दिल पर हज़ार इल्ज़ामात है , क्या कहें।
चाहा था तुम्हे मेरे लिए यही इल्ज़ाम बहुत है,
बस है,यही गम-ओ-आलम अब और क्या कहें।
एक बादल बहुत ही रोया,आंख अश्कों से भरी,
है चाहतों की ये बारिश क़हर सितम क्या कहें।
इक दीया छोटा सा मेरे नाम,कर लिया करना,
सिलसिला है रूह तक इल्हाम का क्या कहें।
-~ बिजल जगड