कविता

खुशहाल भारत मैं बनाऊंगा

चाहे खेत हो या हो खलिहान
सड़क का काम हो या हो मकान
बड़े बड़े पुलों का निर्माण करना हो
क्रिकेट का स्टेडियम हो या हो मैदान
मेरे काम की कीमत कोई समझता नहीं
मेरे बिना कोई भी काम हो नहीं सकता
कड़कती धूप हो या कड़ाके की ठंड
फौलादी शरीर है नरम हो नहीं सकता
सुबह से शाम तक मेहनत करता हूँ
भगवान को मानता हूं हमेशा डरता हूँ
अपने खून पसीने की कमाई से
अपने परिवार का पेट भरता हूँ
जब अमीर ठंडे कमरे में सो रहा होता है
मज़दूर कड़कती धूप में रेता बजरी ईंट ढोता है
भरपेट खाता है पैसे वालों का बच्चा
हमारा दो वक्त की रोटी के लिए रोता है
थका हारा शाम को जब घर पहुंचता है
बच्चों का साथ पाकर खुश हो जाता है
गायब हो जाती है थकान पल भर में
रूखा सूखा खाना पांचसितारा बन जाता है
उम्र बीत गई लोगों के घर बनाते बनाते
अपना आशियाना नहीं बन पाया है
कहीं तो रहना है पेट पालना है
खुले आसमान के नीचे तम्बू लगाया है
मेहनत और ईमानदारी की ही खाऊँगा
अपने बाजुओं की ताकत मैं लगाऊंगा
देश पर अपना सब लुटा दूंगा
एक खुशहाल भारत मैं बनाऊंगा
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र