गीतिका/ग़ज़ल

आसान नहीं होता

ख़ाक में मिल जाना भी आसान नहीं होता।

दर्द में मुस्कुराना भी आसान नहीं होता।।
फूल खिलते हैं हजारों बगिया में।
कांटों संग निभाना भी आसान नहीं होता
बेशक दर्द समेटे है ज़मीं आंचल में।
आसमां सा तकना भी आसान नहीं होता
ये सच है कि मुट्ठी खोलकर जाना है।
मगर मुट्ठी बंद रखना भी आसान नहीं होता।।
जिंदगी फकत दुःख सुख का संगम है।
पर इनसे मिलते रहना भी आसान नहीं होता।।
बड़ी आस लगाए बैठे हैं चौखट पर।
महबूब से नज़र मिलाना भी आसान नहीं होता।।
लेकर कुछ नहीं जाना खाली हाथ जाना है ।
मगर यह समझ पाना भी आसान नहीं होता।।
दिल की गहराइयों से की तो थी मुहब्बत।
ये दिल जलाते ही जाना भी आसान नहीं होता।।
कुछ भी आसां नहीं इस दुनिया में।
सबकुछ निभाकर भी निभा पाना आसान नहीं होता।।
मन के वहम हैं जो लिख डाले कागज पर।
मन खोलकर दिखाना भी आसान नहीं होता।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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