मर्यादा दिखती दफ़न यहां
अब न्याय रसातल जा पहुंचा
अब पाप पुण्य का भान नही
कफ़न में आदर लिपट चुका
अब बचा यहां सम्मान नही
अब हया यहां पर सिसक रही
सभ्यता यहां से खिसक रही
सब चका चौंध में उलझ गए
अब बचा यहां पर ज्ञान नही
अब दवा यहां पे ज़हर लगे
अब करम यहां पे कहर लगे
जो ज़ीनत दाग वही दिखते
इस “राज” में दिखती जान नही
अब रौंद के लगती लगन यहां
मर्यादा दिखती दफ़न यहां
अब समा गई दहशत मुर्दों में
खाली कोई शमशान नही
राजकुमार तिवारी ‘राज’
बाराबंकी उ0प्र0