माँ
दिनभर काम-काज, घर का सम्भालती थी
रातभर जागकर, हमको सुलाती माँ।
माँ के जैसा साहसी ना, होगा रक्षक कोई
लड़ जाती सिंह से भी, बच्चों को बचाती माँ।
जिंदगी की धूप में जो, देखती झुलसता तो
ममता के आंचल की, छाया कर जाती माँ।
सुख-दुख भूल सारे, प्यार जो लुटाती सदा
निज बलिदान को वो, कभी ना जताती माँ।
— नीतू शर्मा मधुजा