दोहा गीतिका
शिक्षा का आदर्श है,शिक्षक प्रभा-मशाल।
तम हो तले चिराग के,शिष्यों का क्या हाल?
सीख ज्ञान-उपदेश की ,दे शिक्षक आदर्श,
नैतिक अहं जवाल से, फूल गए हैं गाल।
संतति बात न मानती, फैला है अंधेर,
पितृ जननि को ठोंकती,शिक्षक को ही ताल।
शिष्यों को ये सीख दे,मत पीना सिगरेट,
स्वयं छिपा गुरु पी रहा, कौवा बना मराल।
कथनी करनी में बड़ा, अंतर भारी मीत,
होगा क्यों उद्धार यों, शिक्षक बना सवाल।
पर उपदेशी की खड़ी, लंबी बड़ी कतार,
गरेबान कब झाँकते, भीतर काले बाल।
डिग्री ली शिक्षक बना,धरे ताक आदर्श,
बातें करे नकार की,क्यों हो शिष्य निहाल?
शिक्षण क्या व्यवसाय है,सेवा देश – समाज,
जीवन में हो सादगी, ओढ़ न केशी-खाल।
‘शुभम्’ रंग में रँग लिया,शिक्षक ने निज गात,
नहीं बना आदर्श वह, बदल गर्दभी चाल।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’