हास्य व्यंग्य

‘हम’ नाक हैं

भाइयो ! बहनो!!जीवधारियों में गहनो! ‘हम’ तुम्हारी नाक हैं। तुम्हारी साँस को चौबीस घण्टे,सातों दिन,बारहों महीने अंदर- बाहर लाने ले जाने वाली डाक हैं।आप कहेंगे कि तुम तो एक हो,फिर ‘हम’ क्यों हो? हम इसलिए ‘हम’ हैं ; क्योंकि दस छिद्रधारी आप जब अपने को ‘मैं’नहीं कह के ‘हम’ सर्वनाम से सम्बोधित कर सकते हैं।तो हम क्यों नहीं! हमारे भीतर भी तो एक नहीं दो -दो छिद्र हैं।

असली बात ये है कि ‘हम’ आपकी नाक हैं।जैसे एक राजा अपने सिंहासन पर उच्च पदस्थ होकर विराजमान रहता है, क्या हमारी भी स्थिति कुछ वैसी नहीं है ! आपके देह के शीर्ष पर स्थित शीश पर हम भी कुछ कम नहीं हैं।इधर-उधर हमें न देखती हुई भी दो छोटी-छोटी आँखें, थोड़ा और पीछे दोनों पटियों पर जिन्हें अब कनपटी कहा जाता है; दो ऐंठे – उमेठे से गुफानुमा दो कान हैं।मेरे ठीक अधोभाग में दो परिपुष्ट अधरों के बीच में बत्तीस दाँतों के साथ सामंजस्य करती हुई एक अस्थिहीन रसना है। मेरे दोनों ओर दो कोमल – कोमल कपोल मेरी साज सज्जा में चार चाँद लगाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ते।औऱ फिर इन सबके मध्य स्थित ‘हम’ नाक।

नाक के नाम एक नहीं अनेक मुहावरे मनुष्य समाज में कहे और सुने जाते हैं।नाक रखना, नाक बचाना, नाक कटना, नाक ऊँची करना, नाक-भौं चढ़ाना,नाक में दम करना, नाक का बाल होना,नाक रगड़ना, नाक आना, उलटी तरफ से नाक पकड़ना, नाक उड़ा देना, नाक ऊँची रखना,नाक ऊँची रहना,नाक और कान लेकर भागना,नाक के फेर से बयान करना,नाक के रेंट से बदतर करना,नाक के रास्ते निकालना,नाक कटवाना,नाक में बाँस डालना, नाक काट के नींबू निचोड़ देना, नाक की फुग्गी,नाक घिसना,नाक चढ़ाए रहना, नाकों चने चबाना, नाक चाटना,नाक चोटी करना,नाक छी जाना,नाक घुस जाना,नाक पर मक्खी न बैठने देना, नाक फुलाना आदि।

यदि आप इन नाक नामधारी मुहावरों की तह में जाएँ तो पाएँगे कि हम ‘नाक’ कुछ यों ही मिया मिट्ठू नहीं बन रहीं।अब अपने ही विषय में कुछ ज्यादा ही खोलकर बताने लगें तो यही कहा जाता है। अब अपने ही विषय में ज्यादा कुछ क्या कहें? और अपनी ही नाक कुछ ज्यादा ही नीची होने लगे तो बिना कहे भी कैसे रहें! मुझे सम्मानित करने के लिए अथवा ये कहें कि अपने को अपने पति के समक्ष अधिक सुंदर दिखने के लिए महिलाएँ मुझे एक औऱ छिद्र से छिद्रित करवाने में भी नहीं चूकतीं और उसमें सोने की बालियां,लौंग, नथुनिया, बुलाक औऱ न जाने क्या क्या लाद देती हैं।उनकी खुशी ही मेरी खुशी है, इसलिए वेदना से पीड़ित होने के बावजूद हम चुप ही रहती हैं।न कुछ कहती हैं, सब सहती हैं।

कहा जाता है कि हर नर – नारी के नाक – नक्श में उसकी पिछली योनि का भी बहुत बड़ा योगदान रहता है।उसी के अनुसार उसके चेहरे -मोहरे की आकृति बनती है।देखा जाता है कि किसी की नाक तोते जैसी, किसी की बन्दर जैसी होती है।कोई प्लेन,कोई उठी हुई चट्टान जैसी तो कोई नन्हीं छोटी मिर्च की तरह सजी होती है। अब ये सब तो विधाता ही जानें कि वे किसको कैसी नाक का स्वामी बनाते हैं।नाक तो अंततः नाक है।नाक का मुख्य काम तो बस श्वास का आदान प्रदान कर जीवन देना है।यही वह स्थान है ,जहाँ से किसी के प्राणवान होने अथवा न होने की जाँच भी होती है।अब रही आप सबकी बात कि आप नाक कितना पाक रखते हैं और अहमियत भी प्रदान भी करते हैं।

सुगंध अथवा दुर्गंध का अनुभव कराने वाली नाक को एक अन्य अर्थ में ‘स्वर्ग’ की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। ‘नाक वास बेसरि लहौ बसि मुकुतनि के संग।’ स्वर्ग की संज्ञा से सुसज्जित होने के बाद भी यदि आपकी समझ में यदि नाक की शाख सटीक लगी हो तो अपने वक्तव्य की इतिश्री करने की अनुमति मिले।मानव जीवन का स्वर्ग नाक से ही है, यह स्वयंसिद्ध है। जिसकी नाक नहीं ,उसकी समाज में शाख नहीं। जिसकी शाख नहीं,वह आप नहीं।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040