मैं जग का हूं मजदूर,कष्ट सहूं दिन रात।
हाथों में छाले पड़े, टूट रही है गात।।१
बच्चे रोते दूध को,मिलती नाही चाय।
रइसों के कुत्ते भले,बैठ जलेबी खाय।।२
कारों में भी घूमते, करें नगर की सैर।
गरीबों को दुत्कारते, मजदूरों से बैर।।३
पत्नी रोई रात भर, मुन्ना है बीमार।
इलाज के पैसे नहीं,किससे करें उधार।।४
नालों के तट सो रहे, मच्छर की भरमार।
ओढ़न को चादर नहीं, किससे करें पुकार।।५
लाये आटा सैर भर,खाने वाले चार।
पतली दाल हो गई,तेल की नहीं धार।।६
नमक मिर्च मिलाय लिया, ले कांदे के साथ।
खुशी खुशी सब खा रहे, रोटी लेकर हाथ।।७
शीत लहर में कांपती, दुर्बल सारी देह।
गर्मी में भी लू सहे, बारिश बरसे मेह।।८
— डॉ दशरथ मसानिया