कविता

सपनों में जीती हूँ मैं

हाँ सपनों में जीती हूँ मैं
क्यूंकि हौसलों की उड़ान सपनों से शुरु होती है
वहीं पर अपनी मर्जी से चल सकती हूँ मैं
कोई रोकने टोकने वाला नहीं है वहाँ
मेरा एक संसार है जहाँ की मालकिन हूँ मैं

खुद को सही साबित कर सकती हूँ चाहे मैं गलती भी कर दूँ तो
वहां मुझे सजा देने वाला कोई नहीं है
मैं उड़ती हूँ,चहकती हूँ,नाचती हूँ गाती भी हूँ

मेरे सपने में मैं जो सोचती हूँ करती हूँ
अच्छा बुरा कोई नहीं कहता मुझे
न बच्चों की कोई मुझे शिकायत मिलती है
मेरी काल्पनिक दुनिया के वो ईश्वर रुपी खजाना है
हाँ जीती हूँ सपनों में मैं कोई पागल नहीँ कहता मुझे क्युंकि कम से कम मुझे सपनों में तो जीने दो
ये मेरे अपने है मुझे हकीकत में कभी सोचा वो नही मिला
तो उम्मीदे सिर्फ सपनों से है उन्हे
अब जी रही हूँ मैं

— वीणा चौबे

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.