मेरा आसमान
उस वक्त तुमने कुछ न कहा
मैंने कितना कुछ था सहा
आज कहते हो रुक जाओ
ढूंढ लिया जब अपना जहां|
पहली बार जब हम थे मिले
शुरू हो गए थे सिलसिले
रूह को तुमने था छुआ
लगता था चहूं और फूल खिले|
तेरी सांसे अब मेरी धड़कन
मेरे मन मंदिर में तुम साजन
तुझ पर ही वार दिया सर्वस्व
तुम बिन कैसे बीते जीवन|
फिर करने लगी इंतजार
देर रात आते हर बार
यह खामोशी और नीची नजरें
खो दिए तुमने सारे अधिकार|
अब आड़े आया मेरा स्वाभिमान
मुझको प्यारा मेरा सम्मान
आजादी चाहते थे तुम मुझसे
कभी थे तुम मेरा अभिमान|
अब मेरी अलग जमीन
और मेरा अलग आसमान|
— सविता सिंह मीरा