कविता

दादा का प्रिय पौत्र

दादा जिसके सबसे करीब होता है
जिसके साथ वह सर्वाधिक खुश रहता है
जिसके साथ अपने सारे दुख दर्द भूल जाता है
जिसके लिए वह हर किसी से लड़ जाता है
जिसे सबसे ज्यादा प्यार दुलार करता है
जिस पर खुद से ज्यादा विश्वास करता है
वो होता है दादा का प्रिय पौत्र।
जिसके हर नाजनखरे उठाता
जिसकी हर फरमाइश पूरी करता है
जिसकी हर कमी पर पर्दा डालता है
जिसे संसार का सबसे प्यारा समझता है
जिसमें कोई कमी नहीं दिखता है
वो होता है दादा का प्रिय पौत्र।
जिसे अपनी ऊंगली पकड़ा हाट बाजार मेला
बड़ी खुशी खुशी जाता,
जिसकी सूरत देख मन आल्हादित हो जाता
जिसे पास सुलाकर, पढ़ाकर
जिसे अपने हाथों खाना खिलाकर
बड़ा आत्मसंतोष मिलता है
वो होता है दादा का प्रिय पौत्र।
जिसमें अपना बचपन दिखता है
जिसके अल्हड़पन से सूकून मिलता है
जिसके नित सफल होने की चाह रखता है
जिस पर खुद को भी वार देने में
तनिक संकोच का भाव तक नहीं होता है
जिसके कंधे पर चढ़कर खुद के
श्मशान जाने की ख्वाहिशें संजोता है
वो होता है दादा का प्रिय पौत्र ।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921