सांध्य की वेल
अस्ताचल गामी रवि रक्ताभ हुआ,
रक्ताभ समंदर का आब हुआ,
चलो, हम-तुम भी विश्राम का वरण करें,
विराम को उद्यत सिंदूरवर्णी आफ़ताब हुआ.
पंछियों ने उड़ान भरी डेरों पर जाने को,
सुदूर में पर्वत चोटियां उन्मुख हैं मुस्काने को,
छाया देने में खुद को असमर्थ मानते हुए,
विटप प्रयासरत हैं दिनकर के नजदीक जाने को.
लालिमा में कालिमा का कैसा ये मेल है!
प्रकृति की विवशता है या विधना का खेल है!
उजियारा जाने को है, अंधियारा आने को है,