कविता

सांध्य की वेल

अस्ताचल गामी रवि रक्ताभ हुआ,
रक्ताभ समंदर का आब हुआ,
चलो, हम-तुम भी विश्राम का वरण करें,
विराम को उद्यत सिंदूरवर्णी आफ़ताब हुआ.
पंछियों ने उड़ान भरी डेरों पर जाने को,
सुदूर में पर्वत चोटियां उन्मुख हैं मुस्काने को,
छाया देने में खुद को असमर्थ मानते हुए,
विटप प्रयासरत हैं दिनकर के नजदीक जाने को.
लालिमा में कालिमा का कैसा ये मेल है!
प्रकृति की विवशता है या विधना का खेल है!
उजियारा जाने को है, अंधियारा आने को है,

कितनी खूबसूरत-अद्भुत सांध्य की ये वेल है!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244