लघुकथा

हुनर

शीतल-मंद-सुगंधित बयार से बतियाता समीर एक जंगल से गुजर रहा था. एक पेड़ पर मधुमक्खी के छत्ते को देखकर मधुमक्खी से बतियाने लगा- “मधुमक्खी रानी, तुम इतनी मेहनत करके शहद बनाती हो, पर तुम्हारा शहद तो औरों के ही काम आता है, फिर तुम इतनी मेहनत क्यों करती हो?”
“शहद बनाना हमारा हुनर है, अगर हम शहद नहीं बनाएंगी, तो हमारा हुनर ही सुप्त-लुप्त हो जाएगा.”
कमाई कम होने के कारण बहुत दिनों से अपने कशीदाकारी के हुनर से निराश समीर नये जोश से अपने हुनर को निखारने में लग गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244