लघुकथा

अशांति का घर

“आजकल चोरी-चकारी कितनी बढ़ गई है!” साथ चल रही सोमवती से रामवती ने कहा.
“महंगाई भी तो इतनी बढ़ गई है न! बड़े-बड़ों को खर्चा पूरा नहीं होता. इसके कारण भी चोरी-चकारी को बढ़ने का मौका मिल गया है!
“सच कहती हो, चोरी-चकारी के लिए लालच भी तो जिम्मेदार है!” सोमवती ने कहा.
“इस लालच से मन में अशांति वास कर जाती है.”
“अशांति वास करने की भली चलाई आपने! एक चोर ने मंदिर से गहने चुराए थे. एक तो उसे गहनों की रखवाली करनी पड़ती थी, दूसरे अशांति के कारण उसे बुरे सपने आने लगे.”
“अच्छा फिर क्या हुआ!” रामवती की जिज्ञासा बढ़ गई.
“फिर क्या हुआ! 9 साल बाद उसने सारे जेवर मंदिर के पास वापस रख गया.”
“इतना ही नहीं, उसने गहनों के साथ एक पर्ची (नोट) भी छोड़ी, जिसमें उसने न सिर्फ अपने किए की माफी मांगी बल्कि गहने वापस करने का कारण भी बताया। साथ ही, उसने पश्चाताप के तौर पर कुछ रुपये भी छोड़े.”
रामवती का गंतव्य आ गया था, जाते-जाते वह बोली. “सच में लालच बुरी बला तो है ही, अशांति का घर भी है.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244