कविता

बगुला भगत

देश से गरीबी हटाते हटाते खुद
बन बैठे स्वंय का वो    धनवान
कल तक कानून के डर से भागे
आज बन गया है खुद पहलवान

करने निकले थे  जनता की सेवा
कर्तव्य पथ भूल बैठा है       ये
तिकड़मबाजी गले पड़     गई
बगुला भगत में दिखते हैं    ये

कैसे कैसे चेहरे ले आते       हैं
खुद बन जाता है      बहु रूपिया
कहाँ सोया है देश का।     कानून
इनके पीछै लगा दो तंत्र खुफिया

जनतंत्र की है गला घोंट       दी
दिखता इनको खतरे में संविधान
उजूल फिजुल खुद बकते       हैं
देश को दिखाते हैं खुद    विधान

कैसे किसपर यकीन करे जनता
कब तलक हम बनते रहेगें मूर्ख
नकली चेहरा ले कर है    घूमता
कब मिटेगी गरीबों की।     भूख

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088