ड्यूटी
सी.बी.एस.ई. बोर्ड की हाईस्कूल की परीक्षा का पहला दिन था। शासन-प्रशासन द्वारा शांतिपूर्वक परीक्षा संपन्न करने के लिए पूरी तैयारी की गई थी। सी.बी.एस.ई. बोर्ड द्वारा परीक्षा प्रारंभ होने से एक घंटा पहले ही सभी परीक्षार्थियों को उनके लिए नियत किए गए परीक्षा केंद्र में रिपोर्टिंग करने के निर्देश दिए गए थे। एहतियातन लगभग सभी परीक्षार्थी डेढ़-सवा घंटे पहले ही पहुंच गए थे। परीक्षा केंद्र के बाहर ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मी देखता रहा, परीक्षार्थी अपने-अपने साधन से आते, गेट के पास लगे नोटिस बोर्ड में अपना रोल नंबर देखकर निर्धारित कक्ष की ओर चले जाते। उसने गौर किया कि एक लड़की लगभग आधे-पौन घंटे से इस नोटिस बोर्ड से उस नोटिस बोर्ड पर जाती, अपना प्रवेश पत्र निकालती और खुद पर झल्लाती रहती। उसे हैरान परेशान देखकर अंततः सुरक्षाकर्मी ने स्नेहपूर्वक पूछ ही लिया, “क्या बात है बेटा, मैं आपको बहुत देर से देख रहा हूं आप कुछ परेशान-सी लग रही हैं ? मुझे बताओ शायद मैं आपकी कुछ मदद कर सकूं।”
लड़की लगभग रोते हुए बोली, “अंकल, मुझे इस नोटिस बोर्ड पर मेरा रोल नंबर नहीं दिख रहा है। यही नहीं यहां मुझे मेरी क्लास के कोई भी बच्चे और टीचर नहीं दिखे।”
सुरक्षाकर्मी को समझते देर नहीं लगी कि उस बच्ची का परीक्षा केंद्र ये स्कूल नहीं बल्कि कोई और स्कूल है। फिर भी पूरी तसल्ली करने के लिए उसने कहा, “बेटा क्या मैं तुम्हारा प्रवेश पत्र देख सकता हूं ?”
“हां, ये देखिए।” उसने अपना प्रवेश पत्र दिखाया।
“अरे, इसमें तो तुम्हारा जो परीक्षा केंद्र लिखा है वह ये स्कूल नहीं है। तुम्हारा परीक्षा केंद्र तो यहां से लगभग सात किलोमीटर दूर है ?” सुरक्षाकर्मी बोला।
लड़की रोने लगी, तो सुरक्षाकर्मी ने कहा, “देखो बेटा, तुम रोओ मत। अभी समय है परीक्षा शुरू होने में। मुझे बताओ तुम यहां कैसे पहुंची हो ?”
“पापा छोड़कर गए हैं। वे मुझे यहां छोड़ कर ट्रेन से अपनी ड्यूटी पर चले गए हैं।” वह रोती हुई बोली।
सुरक्षाकर्मी ने तुरंत अपने सीनियर ऑफिसर को फोन लगाया, “सर, एक परीक्षार्थिनी को गलती से उसके पिताजी इस परीक्षा केंद्र के बाहर छोड़कर अपनी ड्यूटी पर बाहर चले गए हैं। बच्ची स्कूल गेट के पास खड़ी रो रही है। सर, हमें कुछ करना चाहिए वरना इसका एक साल खराब हो जाएगा।”
उधर से आदेश मिला, “तुम उसे तत्काल अपनी गाड़ी में बिठाकर उसके परीक्षा केंद्र में पहुंचाओ। मैं वहां के परीक्षक को तुरंत इंफार्म कर रहा हूं और तुम्हारी जगह ड्यूटी के लिए किसी दूसरे सिपाही को भेज रहा हूं।”
सुरक्षाकर्मी ने आदेश का पालन करते हुए अपने निजी वाहन से उस बच्ची को उसके लिए नियत परीक्षा केंद्र पर समय से पहले ही पहुंचा दिया।
इस प्रकार उस सुरक्षाकर्मी की जागरूकता और उच्च अधिकारी की सहृदयता से बच्ची का एक साल खराब होने से बच गया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़