कविता

जीवन

जीवन
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जीवन क्या है?
महज मिट्टी है मात्र मुट्ठी भर
जिसे ईश्वर ने सजाया, संवारा पंंचत्तवों से,
सांस, प्राण भरकर
ईश्वर के दूत , हलवाह हैं हम इस धरती पर
पालन कर रहे हैं उसके निर्देशों का
उसके एक इशारे पर हम सब नाच रहे हैं।
अपना कुछ भी नहीं है ये जीवन भी नहीं
फिर भी बड़ा गुमान कर रहे हैं
अपने धन दौलत, पद, कद पर
ये जानते हुए भी कि हम खेल रहे हैं।
अदृश्य सत्ता के इशारे पर,
स्वयं तो हम कुछ भी नहीं हैं
फिर भी हम ये समझना नहीं चाहते
कि ये जीवन महज बुलबुला है हवा के गोले का
जो कभी भी फूट सकता है
और जीवन हमेशा के लिये विराम ले सकता है
फिर हमेशा के लिए अनाम हो जाएगा
जीवन का अगला पल हमें दुनिया से दूर कर सकता है
क्योंकि जीवन नश्वर है
जिसे नष्ट होकर मिट्टी में ही मिल जाना है
जीवन जीवन कहां महज खिलौना है
जिसे टूटना बिखरना और नष्ट हो जाना है
मगर यह कोई नहीं जानता है
सिवाय ईश्वर के जिसने हमें जीवन देकर
भेजा है इस धरती पर हमें गढ़कर
मां की कोख के माध्यम से
अपना दूत बना जीवन में प्राण भरकर।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उत्तर प्रदेश
©मौलिक स्वरचित

*सुधीर श्रीवास्तव

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