कविता

मेरी तोंद और कद्दू

मुझे पता है आप सब
मुझ पर हंस रहे हैं
खूब मजे ले रहे हैं।
लीजिए, खूब लीजिये
शर्म लिहाज तो कुछ है नहीं
जो मेरी तोंद तो देख रहे हैं
मगर मेरे सिर पर जो कद्दू  है
दस पंद्रह किलो से कम नहीं है
वो मेरे ही खेत की उपज है
मेरे श्रम का परिणाम है।
मैं खुश हूं अपने आप से
ईश्वर का वरदान है
मुझ पर और मेरे श्रम पर
हे ईश्वर तेरी निगाह है,
मेरे खेत की पैदावार
और मेरी तोंद के विकास में
तेरी कृपा का ही प्रताप है।
हे प्रभु मुझ पर अपनी कृपा
ऐसे ही बनाए रखना,
जो मुझसे कर रहे हैं ईर्ष्या
उनका भी कल्याण करना,
पर मुझसे और मेरे खेत से
उन सबको दूर ही रखो।
नजर कहीं न लग जाए उनकी
मेरी तोंद और मेरे कद्दू को
इन सबसे जरा बचाए रखो।
मेरी तोंद जैसी भी है ठीक ठाक है
बस मेरे कद्दू का स्वास्थ्य सदा
यूं ही सेहतमंद और बलवान रखो।

— सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921